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  #1  
05-31-2012
Rana
Senior Member
 
: Aug 2011
: DELHI
:
: 129 | 0.03 Per Day
हे ग्राम देवता नमस्कार !

धर्म स्वयं की अभिव्यक्ति है और साधना भी स्वयं की अभिव्यक्ति है और ईश्वर भी ! फ़िर क्यूं अन्यन्त्र खोजते है हम इसे….सद-शिक्षा, सेवा, जन-कल्याण की भावना से किए गये धार्मिक अनुष्ठान तो समझ आते है पर कपटी लम्पट और अति महात्वाकाक्षीं कथित सन्तों के पीछे पीछे झण्डाबरदारी करते हमारे साधारण व आस्थावान लोग जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष इन महानुभावों की कीर्ति की बढोत्तरी का साधन मात्र बन कर रह जाते है यह बात मेरी समझ नही आती !

किसी जाति को गुलाम बनाना हो तो उसकी भाषा, उसका इतिहास और उसका धर्म बदल दो वह जाति आप की अनुयायी हो जायेगी…और आर्यों ने, मुसलमानों ने और ईसाईयों ने यही किया…और बदल डाला पूरा समाज जो परंपरा के रूप में बचा वह आज भी विद्यमान है कही कही…!