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लोकतंत्र का प्रहरी? - शम्भु चौधरीभ्रष्टाचार का मुख्य - मुख्य जो स्त्रोत हा सबने सरकार बिल से हठा दिया या जान संगळा का पौ - ..... |
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लोकतंत्र का प्रहरी? - शम्भु चौधरी
भ्रष्टाचार का मुख्य-मुख्य जो स्त्रोत हा सबने सरकार बिल से हठा दिया या जान संगळा का पौ-बारह हो गया। कई लोग राजना कहता कि दिल्ली भ्रष्टलोगां की नगरी है दिल्ली के संसद के शीतकालिन सभागार में जो नये-नये विचार पैदा होते हैं वह तो बंगाल में भी नहीं हो सकते। बंगाल वाले को बड़ा गुमान था ‘‘बंगाल जो आज सोचता है, भारत उसे कल सोचता है।’’ अब देखो आपने कभी सपने में भी यह सोचा था इतना तगड़ा बयान सरकार की तरफ से आयेगा कि लोग सोचते ही रह जायेगें कि आखिर जब सरकार सहमत हो चुकी तो फिर विवाद का प्रश्न ही कहाँ बचा। समाज के सदस्यों को तो सिर्फ धमकी देना आता है। देश के तमाम अखबार जिनको सरकारी रिश्वत बतौर विज्ञापन मिलते हैं उन सबको सूचना भेज दी गई कि वे सरकार का पक्ष मजबूती के साथ जनता के सामने रखें और जो सरकार को अधिक खुश यानी अन्ना के खिलाफ सरकारी पक्ष का साथ देगें उनका कोटा डबल कर दिया जायेगा। अब आप ही सोचिये घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या? खासकर उन समाचार पत्रों को तो सोचना ही पड़ता है जो डरपोक किस्म के प्रजाति के प्राणी हैं। जिनको समाचार की भूख से ज्यादा विज्ञापनों की भूख रहती है। जिस पर सरकारी विज्ञापन न मिले तो इनके प्राण पखेरू ही उड़ जायेगें। अखबार हालां कि या हालत देख मुझे कबीरदास की दो लाइनें याद आने लगी- माटी कहे कुम्हार से , तु क्या रौंदे मोय । एक दिन ऐसा आएगा , मैं रौंदूगी तोय ॥ रोजाना सरकार को भला बुरा कहने वाले मीडिया और समाचार वाले भ्रष्टाचार बिल पर इस कदर चुहे की तरह बिल में जा छुपे कि कोई इनको लोकतंत्र का रक्षक कहे तो सुनने में भी अब शर्म आने लगी। बेचारे कबीरदास ने भी नहीं कल्पना की होगी की उनके दोहे का माटी से भी बुरा हाल कर देगें ये राजनीतिज्ञों के दलाल जो खुद को लोकतंत्र का प्रहरी बताते हैं और आम जनता के पीठ पर ही कलम की धार से वार करने में नहीं चुकते। इस लेख के माध्यम से एक सीध सा सवाल सबसे करना चाहता हूँ देश में पिछले पांच-दस सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले मीडिया और समाचार पत्र वालों न मिलकर उजागर किये वे सभी के सभी किस समूह से जुड़े हुए थे? जिसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कितने थे और अन्य मामाले जिसमें सरकारी अधिकारियों के कितने थे? चाहे वो राज्य सत्ताधारियों के मामले रहे हों या केंद्र सत्ताधारी के हों। सरकार किसकी रही हो या नहीं रही हो।
Last edited by shambhuji; 06-25-2011 at 05:20 AM : para break |