न तो धार्मिक नेता और न ही राजनैतिक नेता उन लोगों में रुचि रखते हैं जिनका नेतृत्व करने का वे दिखावा करते हैं। वे नेता होने में रुचि रखते हैं--और निश्चित ही नेता बिना नेतृत्व के नहीं हो सकते, इसलिए यह जरूरी है कि लोगों की चीजों के वादे किए चले जाओ। राजनेता इस दुनिया की चीजों के वादे उनसे किए चले जाते हैं; धार्मिक नेता दूसरी दुनिया के वादे किए चले जाते हैं। लेकिन क्या तुम कोई फर्क देखते हो उसमें जो वे कर रहे हैं? दोनों ही वादे किए चले जा रहे हैं ताकि तुम उनका अनुसरण करो, इससे डरके कि कहीं कुछ खो ना जाए, क्योंकि यदि तुम राह चूक जाते हो तो तुम वादे से चूक जाओगे।
वाद तुम्हें भीड़ के साथ बनाए रखते हैं--और वादों में कुछ लगता तोहै नहीं। तुम किसी भी चीज का वादा कर सकते हो। वादे हमेशा आने वाले कल के लिए होते हैं, और आने वाला कल कभी भी नहीं आएगा।
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