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नन्हे से पहरेदार - शम्भु चौधरीजल जायेगी धरती तब , संसद के गलियारों में , भड़क उठेगी ज्वाला जब , नन्हे से पहरेदारों में। जन्मेगा ..... |
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नन्हे से पहरेदार - शम्भु चौधरी
जल जायेगी धरती तब, संसद के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला जब, नन्हे से पहरेदारों में। जन्मेगा जब आतंकवाद, इन भोले-भाले बालों में, टपकेगें नयनों से आँसू, हीरे से मोती गालों पे। घर-घर में जब आग जलेगी, संध्या को दिवालों में, पग-पग में तब मौत उगेगी, खेतों और खलियानों में।। जल जायेगी धरती तब, संसद के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला जब, नन्हे से पहरेदारों में। न्यापालिका जब यहाँ पर, सत्ता की गुलाम बनी, जंजीरों को तोड़ यहाँ, लुटेरों की सरकार बनी। विधानसभा जेलों में होगी, संसद तब ‘तिहाड़’ बने, थाने-थाने में गुण्डे होंगे, देश के पहरेदार बने।। जल जायेगी धरती तब, संसद के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला जब, नन्हे से पहरेदारों में। न्यायपालिका जब यहाँ पर, हो जायेगी गूँगी तब, संसद में बैठे नेतागण, चिर का हरण करेगें तब। कौन बनेगा ‘कृष्ण’ यहाँ, किसकी सामत आयी है, कलियुग के भीम-गदा को देखो, युधिष्ठर, नकुल, सहदेव कहाँ ‘अर्जून’ की तरकश में अब, वाणों का वह वेग कहाँ, भीष्मपितामह की वाणी में, ममता-व- स्नेह कहाँ, ‘धृतराष्ट्र’ ढग-ढग पे देखों, सत्ता के गलियारों में, दुर्योधन की गिनती कर लो, चाहे हर मंत्रालयों में।। जल जायेगी धरती तब, संसद के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला जब, नन्हे से पहरेदारों में। आज यहाँ होली तू क्यों, विधवा बनकर आयी हो, सतरंगी - रंगों में देखो, ये कैसी परछाई है? । होली तू ऐसी आयी क्यों? सब अपने ही रंग में सिमट गये, गांधी के भारत को देखो, ये कैसी आग लगाई है।। जल जायेगी धरती तब, संसद के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला जब, नन्हे से पहरेदारों में। |