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सरदारों का जमीर - शम्भु चौधरी

अब आप ही सोचिये स्वयं प्रधानमंत्री जी (चोरों के सरदार) ने ही खुद स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार उनकी गठबंधन .....



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  • 1 shambhuji


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07-15-2011
shambhuji's Avatar
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: Jun 2011
: Kolkata
:
: 39 | 0.01 Per Day
Thumbs up आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी? - शम्भु चौधरी


अब आप ही सोचिये स्वयं प्रधानमंत्री जी (चोरों के सरदार) ने हीखुद स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार उनकी गठबंधन धर्म की मजबूरी है और वे पार्टी के वफादार नौकर से ज्यादा कुछ नहीं हैं तो आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी? प्रधानमंत्री पद व सोनिया से कहीं अच्छा होगा कि आप पत्नी के साथ रोजाना गुरुद्वारे में जाकर अपने पापों का पश्चाताप करें। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’

बाबा अम्बेदकर द्वारा रचित संविधान में राम का नाम लिखना-जपना सांप्रदायिकता है सो हमने इस लय को नई धुन देने का प्रयास कर रहा हूँ। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’ आज देश में हर राजनेताओं की भाषा में अल्पसंख्यकवाद सांप्रदायिकता की बू झलकती है। जिसे देखो हर मामले को सांप्रदायिकता से जोड़ रहा है। कालेधन की बात हो या राष्ट्र में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार जरा सी कोई चूँ-चपड़ किया की बस उसे सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने और चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश का हिस्सा मानने लगते हैं। इनकी भाषा में अल्पसंख्यकवाद सांप्रदायिकता की बात साफ झलकती है। मानो धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ही सिर्फ 35 करोड़ अल्पसंख्यकों को बली चढ़ा दी गई हो। इस कतार में सबके सब लगे हुऐं हैं, धक्कमपेल चल रहा है। 65 सालों से उल्लू बनते आ रहे मुसलमानों के विकास, शिक्षा, कुरीतियों, रूढ़ीवादी परम्पराओं, कट्टरवादी धार्मिकता पर बोलने और उन्हें सुधारने का काम किसी ने नहीं किया। सिर्फ उन्हें हिन्दू कट्टरपंथियों से बचाये रखने व उनकी असामाजिक व कट्टरवादी धार्मिक गतिविधियों का संरक्षण कर वोट बैंक को सुरक्षित करना हमारे देश के राजनेताओं का एक मात्र लक्ष्य रह गया है। इसके लिए मुसलमानों के धार्मिक कट्टरवादी भी विशेष रूप से जिम्मेदार हैं, जो समाज के विकास को रोक राजनेताओं के पक्ष में अपने बयान देते नजर आते हैं। जब इमाम किसी दल विशेष को वोट देने या न देने की अपील जारी करता है तो वह धर्मनिरपेक्ष है। परन्तु जब बाबा रामदेव देश के लुटे हुए धन की बात करता हो या अन्ना हजारे देश की संसद को भ्रष्टमुक्त करने के कानून पर चर्चा करता हो तो या तो इन लोगों को यह सलाह दी जाती है कि वे जनता के प्रतिनिधि नहीं है पहले वे चुनकर आयें तब चुने हुए बेईमानों से बात करें या फिर उन्हें सांप्रदायिक शक्ति करार दे दिया जाता है। मानो इस देश में आतंकवादी हमला करने वाली ताकतें तो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में बचती रहे और राष्ट्र के उन्नति व इसके उत्थान की बात करने वाला या तो देश का गद्दार है या देश में सांप्रदायिकता का जहर फैला रहा हो। मजे की बात यह है कि इससे न तो कभी किसी इमाम का भला हुआ न ही इनकी कौम को हाँ! कभी कभार वह भी चुनाव के वक्त उनके प्रसाद के बतौर थोड़ा बतासा खाने को जरूर मिल जाता है। जैसे कुछ असमाजिक तत्वों की रिहाई या किसी कानून को उनके पक्ष में समाप्त कर देना या बना देना या फिर बंग्लादेशियों को राशनकार्ड व वोटर कार्ड देकर उसे खुद की झौली में जमा कर लेना। इससे इस देश के मुसलमानों का क्या भला हुआ? मुसलमानों के वोट बढ़ने से यदि सत्ता उनको मिलती हो तो बात मेरी समझ में आती पर किसी कांग्रसी ने कभी भी सत्ता मुसलमानों को सोपने की बात कभी नहीं की व सत्ता किसे सोपना चाहतें हैं राहुल गांधी को.... सोनिया जी को या खुद उनसे चिपके रह कर देश को लुटने के फिराक में रहते हैं। अब आप ही सोचिये स्वयं प्रधानमंत्री जी (चोरों के सरदार) ने हीखुद स्वीकार किया है कि भ्रष्टाचार उनकी गठबंधन धर्म की मजबूरी है और वे पार्टी के वफादार नौकर से ज्यादा कुछ नहीं हैं तो आपका जमीर कहाँ गया सरदार जी? प्रधानमंत्री पद व सोनिया से कहीं अच्छा होगा कि आप पत्नी के साथ रोजाना गुरुद्वारे में जाकर अपने पापों का पश्चाताप करें। ‘‘अल्लाह तेरी गंगा (संसद) मेली हो गइइईं-पापीयों के पाप धोते-धोते...2’’ (लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Last edited by shambhuji; 07-15-2011 at 03:45 PM : mistek

 



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