लोकपाल बिलः कांग्रसी अलाप -शम्भु चौधरी
1. फूट डालो राज करो
आखिरकर जैसे-जैसे 30जून सामने आते जा रही है, कांग्रसी का असली चेहरा भी सामने आने लगा। पहले यही काम वे बाबा रामदेव को अपना मोहरा बनाकर सिविल सोसाइटी के लोगों कोमुर्ख बनाने एवं फूट डालो राज करो की अंग्रजी चाल का पासा चला जब वो चेहरा बेनकाब होकर जनता के सामने उसके परचे-परचे उखड़ गये तो अब कांग्रसी लोगों को
गांधीवादी अन्ना हजारे तानाशाह नजर आने लगे। चलिये पहले हम पिछले दिनों तेजी से बदलते स्वर पर एक नजर डाल लेते है। अन्ना के अनशन से उठे जनसैलाब के भय से कांग्रेस की सरकार शुरू में इस बात पर जोर देने लगी वो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता के साथ है और ईमानदारी पूर्वक वो भी इस बिल को संसद में लाने की पक्षधर है। परन्तु इसके लिए एक प्रक्रिया है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंर्तगत जरूरी है कि समाज और सरकार के सदस्य मिलकर इस बिल के ड्राफ्ट को बना संसद में पारित करनेहेतु भेजे। सरकार ने आनन-फानन में अन्ना हाजारे के अनशन को समाप्त कराने के लिए रातों-रात सरकारी छापाखाना खुलवा गजट भी जारी करवा दिया। दरअसल में सरकार का यह चेहरा उनके शकुनि विजय का था जिसको लेकर वे राहत की सांस लेने लगे थे कि बड़ी सावधानी से उनलोगों ने
सिविल सोसाइटी के सदस्यों को एक पिंजरे में बन्द कर दिया है।
बैठकें शुरू हुई सरकार की मंशा एवं लोकपाल बिल को लेकर उनका नेक इरादा सामने आने लगा। एक-दो बैठकों के बाद ही इन लोगों ने अन्ना से नाराज खेमे बाबा रामदेव की महत्वकांक्षी भूख को मिटाने के लिए योजनाबध तरिके को अपना कर उनसे सरकारी बयान दिला दिया। सरकार के पांच-पांच मंत्री बाबा के आवभगत में भेजे गये। खैर बाबा का क्या हर्ष कांग्रेसी तानाशाहों ने किया उसे सारी दुनिया ने देख ही लिया। तानाशाह का अर्थ क्या होता है इससे बड़ा उदाहरण और क्या दिया जा सकता है कि आधी रात को सोई हुई जनता पर लांठियां बरसाई गई। रातों-रात हीलन से भीलनबना दिये गये बाबा रामदेव। कारण स्पष्ट था गुप्त समझौते के अनुसार बाबा का कांग्रसी आदेशों का पालन न करना था।
2. खुद के काले करनामे को उजागर:
बाबा का प्ररकरण पर शतरंजी विजय प्राप्त कर लेने वाले कांग्रसी के हौसले अबतक बुलंदियों पर पंहुच चुके थे। श्रीमती सोनिया गांधी सहित भ्रष्टाचार में लिप्त देश के तमाम राजनेताओं ने होली मनाई। मानो इनके खुशी के ठिकाने भी न रहे। कांग्रेस इस सफलता का दूसरा निशाना अन्ना और सिविल सोसाइटी की तरफ मोड़ बैठकों में खुलकर अपने गुप्त ऐजेंडे को लेकर बोलने लगे और अभद्र शब्दों का प्रयोग करने में भी संकोच नहीं किया।
संसद के चुने हुए प्रतिनिधि और न चुने हुए प्रतिनिधि -
सरकारी प्रवक्ता इस बात पर बार-बार जोर दे रहें है कि वे चुने हुए जनता के प्रतिनिधि हैं। इसका क्या अर्थ होता है? कि वे जनता की बात सुनने या मानने से इंकार कर दें? आखिर में सरकार और सरकारी चापलूसी करने वाले मीडियाकर्मी व संपादक ये भी बताये कि चुने हुए इस भ्रष्ट लागों का रोल क्या है? इनकी संवैधानिक जिम्मेदारियां क्या-क्या है? संसद के अन्दर इनकी क्या जिम्मेदारी है और संसद के बाहर क्या-क्या है? उल्फा या गोरखालेंड के प्रतिनिधियों में से कितने चुने हुए सांसद है जिनकी मांगे मानी गई। उल्फा को तो सरकार ने आर्थिक पैकेज तक दे दिया। सांसद जनता के प्रति भी जिम्मेदार है कि सिर्फ संसद के प्रति? सांसदों को जो सुविधा प्रदान की जाती है वो सभी उनको मौज-मस्ती करने के लिए ही दी जाती है क्या? भ्रष्टाचार देश की समस्या है कि नहीं? यदि है तो इसके लिए सरकार ने इसे समाप्त करने के लिए अबतक क्या-क्या उपाय किये? ऐसे सैकड़ों सवाल हैं, जिसे लिखा जा सकता है।
सरकार की मंशा में खोटः
अपने गुप्त ऐजेंडे को किसी प्रकार लागू करवा सके इसीलिए सरकारी पक्ष बैठकों में उनके द्वारा किये जा रहे व्यवहार को जनता के सामने लाने हिचक रही है। जबकि सिविल सोसाइटी का मानना है कि यदि सरकारी पक्ष बिल के प्रति ईमानदारी से पेश आना चाहती है तो इसका सीधा प्रसारण से डर क्यों रही है? दरअसल बात कुछ ओर है कांग्रेस की सरकार न तो कभी इस बिल को लेकर गंभीर रही है न आज है। इनका सीधा सा मकशद है किसी तरह जनता और मीडियाकर्मी को भ्रमित कर अपना उल्लू सीधा कर लें। कांग्रेस सहित तमाम पार्टी जिसमें भाजपा, माकपा, भाकपा, राकंपा, समाजवादी, तृणमूल, करुणनिधि, जयललिता, लालू-माया जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं ये सभी जानते है कि इस बिल के पारित हो जाने से सबसे ज्यादा उनको क्षति होने वाली है। अर्थात इससे देश का व्योरोकेट अधिकारियों को कम उनको सबसे अधिक इसका सामना करना पड़ेगा। कारण साफ है सरकार बनती और बिगड़ती है और भ्रष्टाचार की शुरूआत संसद और विधानसभाओं में बहुमत को लेकर ही होती है। अब आप कल्पना किजिए कोई अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी क्यों मारेगा। इसलिए सबकेसब इस मामले को इतिश्री का इंतजार बड़ी बेसब्री कर रहे हैं। इसलिए ज्यों-ज्यों दिन गुजरता जा रहा अन्ना की बात कांग्रेस को धमकी लगने लगी।