India Against Corruption

Register

  India Against Corruption > INDIA AGAINST CORRUPTION > Starters > Members Forum > Member Intros

क्या भ्रष्टाचार को मिटाना सरकार का कर्तवî

http://vmwteam.blogspot.in/2010/11/blog-post_2192.html आज़ादी के बाद गांधी जी ने बलशाली भारत का सपना देखा था। उन्होंने संदेश दिया- “गांव की ओर चलो”। .....



2
  • 2 vmwteam


  #1  
08-06-2012
Junior Member
 
: Aug 2012
: Jaipur,Rajasthan
: 34
:
: 1 | 0.00 Per Day
क्या भ्रष्टाचार को मिटाना सरकार का कर्तवî


http://vmwteam.blogspot.in/2010/11/blog-post_2192.html
आज़ादी के बाद गांधी जी ने बलशाली भारत का सपना देखा था। उन्होंने संदेश दिया- “गांव की ओर चलो”। जब तक गांव स्वावलंबी और स्वयंशासित नहीं बनेंगे, तब तक सही बलशाली भारत का सपना पूरा नहीं होगा। गांधी जी का कहना था कि विकास करते समय इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है। हम प्रकृति और मानवता का शोषण (दोहन) करते हुए प्रकृति ने हमें जो देन दिया है उसका सही तरीके से नियोजन करें ताकि व्यक्ति, परिवार और गाँव स्वावलंबी बने।
आज हम विकास का सपना देख रहे हैं। लेकिन प्रकृति और मानवता का दोहन करके विकास हो रहा है। उदा, पेट्रोल, डीजल, रॉकेल, कोयला, पानी जैसे भूगर्भ और भूपृष्ठ के साधन सम्पति का ज्यादा से ज्यादा शोषण (दोहन) करके विकास कर रहे हैं। यह सही विकास नहीं है। बढ़ती हुई जनसंख्या बढ़ती ही जाएगी और जनसंख्या बढ़ने के कारण लोगों की जरूरतें भी बढ़ती जाएंगी। बढ़ती हुई जनसंख्या की अंतिम सीमा नहीं है। लेकिन प्रकृति से जो चीज़ें ले रहे हैं उन सबकी सीमा है। वह एक-एक करके ख़त्म होने वाली हैं। इसका विचार करना जरूरी है। दोहन के कारण आज देश के कई गांवों का पानी ख़त्म हो गया है। गरमी के दिनों में वहां बाहर से टैंकर से पानी लाना पड़ता है। आज पानी ख़त्म हो गया है, एक दिन पेट्रोल ख़त्म हो जाएगा, डीजल ख़त्म होगा, रॉकेल ख़त्म होगा, कोयला ख़त्म होगा। उस वक्त हमारी आने वाली संतान का क्या होगा? आज इस बारे में कोई सोच नहीं हो रही है। इसलिए महात्मा गांधी सोचते थे कि प्राकृतिक स्थिति देखकर सही नियोजन करके विकास करना आवश्यक है। भारत के लिए भगवान ने प्राकृतिक साधन, संपत्ति का खजाना दिया है लेकिन सही नियोजन करके विकास करना जरूरी है। देश की अर्थनीति के बारे में महात्मा गांधी जी ने कहा है कि देश की आर्थिक दशा बदलनी है तो उसके लिए गांव की आर्थिक दशा बदलनी होगी। कारण भारत देश गांव में बसा हुआ देश है। गांव के लोगों को हाथ के लिए काम और पेट के लिए रोटी गांव में मिल गई तो गांव में शहरों से कम सुविधा मिल जाने से भी लोग गांव से शहर के तरफ नहीं जाएंगे। तभी गांव की आर्थिक दशा बदलेगी।
हमारे देश के कई नेताओं को लगा कि बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री खड़ी किए बिना देश का विकास नहीं होगा और हमारे कई नेता बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री खड़ी करने में जुट गए। शहरों में जैसे जैसे इंडस्ट्री खड़ी होती गई वैसे वैसे गांव के लोग शहर की तरफ बढ़ते गए। शहर फूलते गए, झोपड़ियाँ बढ़ती गई, गुनहेगारी बढ़ गई प्रकृति और मानवता का शोषण (दोहन) शुरू हुआ। प्रकृति का जितना शोषण हुआ उतना ही पर्यावरण का समतोल बिगड़ता गया। बढ़ती हुई इंडस्ट्री के कारण पानी और ज़मीन खराब हो गई। कितने भी पैसे खर्च करके खराब हुई ज़मीन और पानी नहीं सुधरेगी। जिन नदियों को हम पवित्रा मानते थे उन नदियों का पानी भी इंडस्ट्री के कारण खराब हो गया है। वह खराब पानी डैम में गया और डैम का पानी जिन शहरों में पीने के लिए जाता है वह भी दूषित हो गया। देश के विकास का सपना देख़ते हुए बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री खड़ी कर दी। इंडस्ट्री खडी करने के बाद 65 साल में देश का सही विकास हुआ दिखाई देना चाहिए था लेकिन देश का चित्र क्या है?
आज़ादी के 65 साल के बाद सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत पर हिमालय जैसी कर्ज की पहाड़ी बन गई है। लिए हुए कर्ज का ब्याज भरने के लिए पैसा नहीं इसलिए फिर से कर्ज लेकर ब्याज भर रहे हैं। इस स्थिति से हमारा देश गुज़र रहा है। आज हर परिवार में बच्चा जन्म लेता है तो 22 से 25 हज़ार रूपए कर्ज की गड्डी सर पर लेकर जन्म ले रहा है। जन्म लेने में उस का क्या दोष था? आज़ादी के बाद इंडस्ट्री के साथ-साथ देश के हर गांव में जमीन और पानी का यदि सही नियोजन करके विकास होता और इंडस्ट्री पर जो खर्च हुआ, उसमें से कुछ पैसा गांव के सर्वांगीण विकास में लग जाता, तो आज देश की जो सामाजिक और आर्थिक हालत हुई है, वह नहीं होती।
मैं सिर्फ शब्दों से इस बात को नहीं कह रहा हूं। मैंने जमीन पर प्रयोग किए हैं। एक गांव में नहीं, कई गांवों में प्रयोग किए हैं । उनके अच्छे रिज़ल्ट आने के कारण मैं इस बात को रख रहा हूं। आज हर गांव में गिरने वाला बारिश का पानी गांव में रोकथाम न करने के कारण वह पानी गांव से नदियों में जाता है, नदियों से बड़े-बड़े डैम में जाता है और डैम से समुद्र में चला जाता है। समुद्र में जो पानी गया उसका गांव के लिए या जनता के लिए कोई उपयोग नहीं होता, बारिश का पानी गांव से बह जाने के कारण आज गांव-गांव में पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। डैम के जरिए शहरों में बसी हुई जनता और इंडस्ट्री के लिए पानी लेकर गए हैं। इंडस्ट्री चलाने के लिए, पीने के पानी के लिए गांव का पानी डैम तक जाना जरूरी है लेकिन वह पानी समुद्र में नहीं जाना चाहिए।
डैम में सिर्फ बारिश का पानी ही नहीं जा रहा है बल्कि उस पानी के साथ-साथ गांव की उपजाऊ मिट्टी भी डैम में जा रही है। आज हर एक डैम में हर साल हज़ारों टन मिट्टी इकट्ठा हो रही है। उसके कारण डैम की पानी स्टोरेज करने की क्षमता कम होती जा रही है। नेताओं ने और जनता ने अगर इस स्थिति के बारे में नहीं सोचा तो आगे भ्रष्टाचार से देश के लिए जो ख़तरे बने हैं उससे भी ज्यादा बड़े राष्ट्रीय ख़तरे निर्माण होंगे। जिस प्रकार हर इंसान को मृत्यु पसंद नहीं है लेकिन 70/80/90/100 साल के बाद वह आ ही जाती है, कारण कि मृत्यु प्रकृति का नियम है। जिस प्रकार हर इंसान को मृत्यु अटल है वैसे ही हर डैम की मृत्यु भी अटल है। हर साल हर डैम में बारिश के पानी के साथ बह कर आने वाली हज़ारों टन मिट्टी डैम में भर्ती जा रही है। 400/500/1000 साल बाद डैम मिट्टी से भर जाएंगे। उस मिट्टी को न सरकार निकाल पाएगी न जनता निकाल पाएगी। कारण डैम का स्टोरेज बैंक वॉटर क्षेत्र 60, 70, 80, 90 किलोमीटर लंबाई में है और ऊंचाई 500 से 600 मीटर से ज्यादा होने के कारण डैम के अंदर मिट्टी की एक पहाड़ी बन जाएगी। कौन उठाएगा इस पहाड़ी को? कहां डालेंगे इस मिट्टी को?
नए डैम बनवाने के लिए हमारे पास डैम की साइट नहीं होगी। क्या होगा आज के बिजली प्रकल्प का? इंडस्ट्री का? शहरों को मिलने वाले पानी का? इन राष्ट्रीय ख़तरों को टालने के लिए हर गांव में से जो मिट्टी बारिश के पानी के साथ बहकर डैम में जा रही है उसे गांव में रोकना ही जरूरी है। ऐसा करने से डैम के कारण जो राष्ट्रीय ख़तरे निर्माण हो रहे हैं उसे रोक सकेंगे और गांव की मिट्टी गांव में रोकने का प्रयास करेंगे तो बड़े पैमाने पर गांव में पानी भी रूक जाएगा। उसी से ग्राम विकास कार्य में मदद मिलेगी। कारण ग्राम विकास, जल ग्रहण क्षेत्र विकास (Water Shed Area Development) के कार्यक्रम पर आधारित है।
महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले में रालेगणसिद्धी नाम का दो हज़ार आबादी का गांव है। इस गांव में गरमी के दिनों में पीने का पानी नहीं था। 80 प्रतिशत लोगों को खाने को अनाज नहीं था। गांव में काम न होने से 5-6 किलोमीटर दूर तक मजदूरी के लिए जाते थे। हाथ के लिए काम नहीं था, पेट के लिए रोटी नहीं थी। इसलिए कई लोगों ने शराब की भट्टी चला रखी थी। 30-35 शराब की भट्टी हो गई थी। शराब निकालना, गांव-गांव में बेचना और अपने बाल-बच्चों को संभालना। शराब के कारण गांव में झगड़े टंटे भी ज्यादा होते थे। गांव में पढ़ाई की सुविधा नहीं थी। दो कमरे में चार क्लास तक की पढ़ाई होती थी। इंसान और जानवरों की आरोग्य की कोई सेवा नहीं थी। गांव में छूत अछूत का भेदभाव होता था। 12-13 साल में ही लड़की की शादी हो जाती थी। परिस्थिति ने उन्हें मजबूर किया था। 1975 में इस गांव के विकास के लिए शुरूआत की गई, स्वामी विवेकानंद कहते थे- भूखे पेट से बैठे हुए लोगों को ज्ञान की बात बता कर कुछ नहीं होगा। पहले उसके पेट के लिए रोटी और हाथ के लिए काम कैसे निर्माण हो इसके लिए सोचना जरूरी है और उस बात को सोचा गया। बारिश के पानी का एक-एक बूंद पानी गांव में ही रोकने का प्रयास किया। घास को बढ़ाया, तीन लाख से ज्यादा पेड़ लगाए। नाला बांध चेक डैम, समेंट डैम, सीसीटी, परक्युलेशन टैंक जैसे कई उपचार पद्धति बनाई और गिरने वाला बारिश का पानी गांव में ही रोक दिया। अकाल पीड़ित क्षेत्र होने के कारण हर साल बारिश सिर्फ 400-500 मि.ली. तक होती है। पानी गांव में रोकने के कारण पहले 300 एकड़ ज़मीन में एक फसल नहीं मिलती थी। आज 1500 एकड़ जमीन में दो फसलें मिलने लगी हैं। आज 35 साल के बाद देखेंगे वही गांव है, वही लोग हैं, वही जमीन है। कोई भी उद्योगपति का पैसा न लेते हुए आज गांव स्वावलंबी हो गया है। जिस गांव में 80 प्रतिशत लोग भूखे पेट से सोते थे, आज उसी गांव से तरकारी विदेशों में निर्यात हो रही है। मजदूरी के लिए लोग बाहर जाते थे। आज गांव में दस लोग मजदूरी के लिए नहीं मिलते। अपनी ही खेती पर उनके लिए काम निर्माण हो गया है। हाथ के लिए काम और पेट के लिए रोटी गांव में मिलने के कारण शहरों में जाने वालों की संख्या घट गई है। इतना ही नहीं शहर में गए लोग गांव में फिर से आकर बसे हैं। आज कोई भी परिवार बाहर से अनाज नहीं लेता है। पहले गांव से 300 लीटर दूध बाहर नहीं जाता था। आज हर दिन 4 से 5 हज़ार लीटर दूध बाहर जा रहा है। हर दिन 80-90 हज़ार रुपए दूध की बिक्री से गांव में आ रहे हैं। भूखे पेट से रहने वाले गांव से आज तरकारी शहरों में जा रही है। हर साल 150-200 ट्रक प्याज मद्रास, बैंगलोर जाता है। बच्चों के सिर्फ चार क्लास शिक्षा होने वाले गांव में आज बारहवीं की क्लास तक आर्ट साइंस पढ़ाई हो रही है। लड़कियां शिक्षा से वंचित थीं। आज लड़किया भी ग्रेज्युएट बन गई हैं।
दलित समाज को मंदिर में प्रवेश नहीं था। दलितों के पानी का कुआं अलग था। शादी के खाने पर दूर बिठाते थे। आज दलित समाज पर चढ़ा हुआ 60000 रुपयों का कर्ज जब उनसे पूरा नहीं हुआ तो गांव में ग्राम सभा ने निर्णय लिया कि दलितों का कर्ज हम गांव के दूसरे लोग पूरा करेंगे। सभी गांव के लोगों ने दलित समाज के जमीन पर दो साल श्रमदान किया। फसल उगाई और दलितो का कर्ज गांव वालों ने पूरा किया है। आज गांव में सार्वजनिक खाने का कार्यक्रम होने से खाना पकाने में और खाना बंटवाने में सभी जाति धर्मों के साथ दलित भी साथ में होते हैं। कोई छूत-अछूत नहीं रहा है। करोड़ों रुपयों की स्कूल की इमारत, मंदिर, समाज मंदिर जैसे इमारतें लोगों ने अपनी मेहनत और श्रमदान से बनाई हैं। पिछले सात साल में इस गांव को देश-विदेश के साढ़े पांच लाख लोग देखने आए। अब रालेगणसिद्धी के पड़ोस के पांच गांव भी बहुत अच्छे बनते जा रहे हैं। महाराष्ट्र में कई गांवों में ग्राम विकास का काम चल रहा है। इसके लिए 50 नए गांवों का चयन भी हो रहा है।
यह सब बाते लिखने का उद्देश्य इतना ही है कि देश का सही विकास करना है तो एक तरफ देश के बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जनलोकपाल और जनलोकायुक्त कानून बनवाने का प्रयास हो रहा है और कई अन्य प्रकारों के भ्रष्टाचार रोकने के लिए चुनाव सुधार, राइट टू रिजेक्ट, सत्ता का विकेंद्रीकरण का कानून बनवाने हैं और साथ-साथ कानूनों का सही अमल होने के लिए भी प्रयास होना है। साथ-साथ देश के विविध हिस्सों में सौ गांव आदर्श गांव भी बनाने हैं। एक तरफ भ्रष्टाचार को रोकना और दूसरी तरफ आदर्श गांव का निर्माण करना देश के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण काम है। इन दोनों कार्यों को आगे बढ़ाने से बलशाली भारत खड़ा होगा। आज हमारे पास देश के कई भागों से अपना जीवन समर्पित करने वाले अच्छे-अच्छे लिखे-पढ़े ध्येयवादी सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखने वाले अनुभवी पचास (50) लोगों के पत्र आए हैं। जो अपना जीवन समर्पण करने के लिए तैयार हो गए हैं। कई लोग अपना परिवार चलाकर महीने में 12 से 15 दिन का समय देने को तैयार हो गए हैं। कई लोग अपने-अपने क्षेत्र में स्वयंसेवी (वॉलेंटीयर) बनकर कार्य करने के लिए तैयार हो गए हैं। कई युवक हैं जिन्होंने शादी नहीं की। वह कहते हैं कि मुझे शादी नहीं करनी। मैं देश के लिए और समाज के लिए अपना जीवन देने को तैयार हूं। 5 अप्रैल, 2011 और 16 अगस्त, 2011 को देश में जो आंदोलन हुआ था उसमें जो युवा शक्ति और भाई-बहन शामिल हुए उसके कारण देश की जनता को बहुत प्रेरणा मिली है। उसके कारण अपने देश के प्रति समर्पण की भावना से आगे आ गए है।
जीवन समर्पित करने की इच्छा रखने वाले जो लोग आगे आ रहें हैं, देश के उज्वल भविष्य के लिए ये एक आशादायी चित्र दिखायी दे रहा है। अब हमें पहले इनमें से चरित्रशील लोगों का चयन करना होगा इसलिए देशभर में अपने विश्वास के लोगों को भेजकर निरीक्षण करना होगा। चयन के साथ-साथ प्रशिक्षण देना होगा। गांवों को आदर्श बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को लीडरशीप की ट्रेनिंग देनी पड़ेगी। वह तीन महीने तक का प्रशिक्षण होगा। एक गांव के लिए दो लीडर निर्माण करना जरूरी है।
यह सिर्फ कल्पना नहीं है। हम लोगों ने 35 साल में यह काम किया है। महात्मा गांधी जी के पीछे आर्थिक सहयोग के लिए उद्योगपति खड़े हो गए थे। वैसे ही आदर्श गांव के कार्य के लिए देश के चरित्रशील उद्योगपति, जिनमें राष्ट्रप्रेम की भावना हो, ऐसे उद्योगपतियों को भी जोड़ना होगा। मुझे विश्वास होता है कि भ्रष्टाचार को रोकना और आदर्श गांव को बनाना यह देश को नई दिशा देने वाला कार्य होगा। ग्राम विकास का अनुभव होने वाले कार्यकर्ताओं ने अधिक मार्गदर्शन किया तो यह कार्य, एक पथ प्रदर्शक कार्य बनेगा ऐसा मुझे लगता है।

Last edited by vmwteam; 08-06-2012 at 10:14 AM

 



India Against Corruption
India Against Corruption is a PUBLIC Forum, NOT associated with any organisation(s).
DISCLAIMER: Members of public post content on this website. We hold no responsibility for the same. However, abuse may be reported to us.

Search Engine Optimization by vBSEO 3.6.0