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लोकतंत्र ने लोकतंत्र को ललकारा...

लोकतंत्र ने लोकतंत्र को ललकारा... - शंभु चौधरी मानो संसद के अंदर एक ऐसी भीड़ जमा हो गई है जो .....



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  • 2 shambhuji


  #1  
08-25-2011
shambhuji's Avatar
Member
 
: Jun 2011
: Kolkata
:
: 39 | 0.01 Per Day
Post लोकतंत्र ने लोकतंत्र को ललकारा...


लोकतंत्र ने लोकतंत्र को ललकारा...- शंभु चौधरी
मानो संसद के अंदर एक ऐसी भीड़ जमा हो गई है जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस बात को पुख्ता कर रही है कि संसद के अंदर सारे सांसद देश को लूटने में लगे हैं। हमें आज इस बात को सोचने के लिए मजबूर कर रही है कि देश में लोकतंत्र को अब किस प्रकार बचाया जा सके। अब दो लोकतंत्र की लड़ाई आमने-सामने होती दिखाई देने लगी है। इस देश में अब साफ होता जा रहा है कि तमाम राजनैतिक दल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक होकर लोकतंत्र के माध्यम से ही लोकतंत्र पर कब्जा कर लोकतंत्र को ही ललकार रहे हैं।

आज श्री अन्ना जी के अनशन का 10वां दिन है। इस बात में अब कोई विवाद नहीं दिखता कि देश दो भागों में बंट चुका है। इतिहास के पन्नों में हर पल को बड़ी बैचेनी से देखा और लिखा जा रहा है। एक तरफ श्री अन्नाजी के समर्थन में जन सैलाब का उभरता आक्रोश है तो दूसरी तरफ लोकतंत्र की दुहाई देने वालों की जमात। इस देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि संसद में जिन सांसदों को जनता चुनकर भेजती है, संसद तक पंहुचते-पंहुचते उनके विचार किसी बंद दरवाजे में जाकर कैद हो जाते हैं। और लोकतंत्र सिर्फ चन्द सौदागरों के हाथों कठपुतली बनकर रह जाती है। मुझे अब ऐसा लगने लगा है कि जिस प्रकार इस देश में दो कानून, दो गीत, दो नाम हैं उसी प्रकार देश में दो लोकतंत्र भी है। एक संसद के भीतर का लोकतंत्र जो देश को लूटने में लगा है। जिसके अन्दर देश के सारे के सारे चोर, बेईमान और भ्रष्टाचारियों की जमात भरी हुई है जो आपस में मिलकर देश को भीतर ही भीतर खोखला किये जा रही है। दूसरी तरफ लाचार और वेबस लोकतंत्र जो अपनी बात कहने में डरती है। परन्तु आज जनता सामने आने का कदम उठा चुकी है। अब आर-पार की लड़ाई की शुरू होनी तय दिखती है।
यहाँ राजनैतिक रूप से तीन प्रमुख राजनैतिक विचारधाराओं का संक्षिप्त विश्लेशन करने का भी प्रयास करूगाँ।
कांग्रेस पार्टी: कांग्रेस पार्टी के लोकपाल बिल पर खुद के और श्रीमती सोनिया जी, प्रधानमंत्री श्री मनमोहान सिंह जी के बयान भले ही एक मजबूत लोकपाल के पक्ष में रहें हो परन्तु लगातार दो माह की जद्दो-जहद के पश्चात लोकसभा के पटल पर जो बिल प्रस्तुत किया गया उसे सिविल सोसायटी के सदस्यों ने पहले ही खारिज कर दिया था। इससे सरकार की न सिर्फ मंशा पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ साथ ही साथ सरकार ने जनता के साथ विश्वासघात भी किया है। सरकार ने पिछले अनशन के समय जिस विश्वास का पूल जनता के साथ निर्माण किया था जो एक धोखा निकाला। जिस लोकतंत्र की दुहाई देकर सरकार संसद को एक करने में जूटी वह आंसिक रूप से सरकार के साथ तो दिखी पर अपनी राजनीति भी इस बीच तलाशते दिखे। संसद के भीतर मानो एक अलग लोकतंत्र चलता है और संसद के बहार का लोकतंत्र अलग हो। शाहबानू या आपातकाल के समय कांग्रेसी सरकार ने संसद में जिस प्रकार नियम कायदे तौड़े सब भूल चुकी है। जहाँ वोट बैंक की राजनीति हो वह लोकतंत्र अलग है और जहाँ मंहगाई, भ्रष्टाचार की बात हो वहाँ सरकार को सारे नियम-कायदे और संसद की मर्यादा दिखने लगती है। इससे साफ जाहिर होता है कि लोकतंत्र को कांग्रेस पार्टी अलग-अलग चश्में से देखती है।
भाजपा पार्टी:
हिन्दूवादी विचारधारा को लेकर जन्मी भाजपा में राजनैतिक रूप से स्पष्ट विचारधारा की शून्यता साफ झलकती है। अब न तो इसके पास हिंदू विचारधारा बची ना ही राष्ट्रीय विचारधारा। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अब तक इस पार्टी के नेताओं के संसद के अन्दर और बहार जो भी बयान आयें हैं वे न सिर्फ निराशाजनक स्थिति की एक झलक दर्शाती है। लोकपाल या जन लोकपाल बिल को लेकर इस पार्टी ने कई बार इस तरह के बयान दिये जैसे इनके बोलने से भूचाल आ जाएगा परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। एक बार तो इसने यह भी कहा कि इनकी पार्टी लोकपाल पर सिर्फ संसद के अन्दर ही बोलगी। अब इसने सारी बात संसद में बोल दी है संसद में इनके बयान आते ही इस दल की न सिर्फ विश्वनियता समाप्त हो चुकी आने वाले समय में भाजपा का राजनैतिक सफाया निश्चित लगता है। जिसने राम को बेच डाला उसके मुंह से राष्ट्रीयता की बात कुछ भी समझ से परे है। इनके ‘‘प्रधानमंत्री-इन-वेटिंग’’ वोट लेने के लिए कांग्रेसियों से भी दो कदम आगे निकल गए। कायदे-आजम मो. जिन्ना जी की मजार पर भी फूल चढ़ा आये। यदि ये अजमेर चले जाते तो कम से कम इनको सच में ईश्वर का आर्शीवाद प्राप्त होता।
माकपा पार्टी:
पिछले 30 सालों से बंगाल में मुझे इस दल को काफी नजदीक से देखने और समझने का अवसर मिला है। फिर भी आजतक इस दल मैं नहीं समझ सका। पिछले 35 साल बंगाल में राज की और इन 35सालों में 35 हिन्दीभासी को भी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं जोड़ पाई। मजे की बात खुद को राष्ट्रीय पार्टी कहती है? जिन मजदूरों के हितों की बात करती है यह उनके परिवारों को ही खा जाती है। जिन किसानों के हक की बात करती रही आज उन किसानों की जमीनों को भी हड़प कर गई। जब भी देश को आतंकवाद से खतरा हुआ इसने कुछ भी नहीं कहा। जब भी देश पर विदेशी हमला हुआ इस दल ने चीन की भाषा का प्रयोग किया। मंहगाई की बात पर सड़क पर कुछ और, संसद में कुछ और बयान देती रही। जो खुद सड़कों से देश की सत्ता को चुनौती देती रही है आज देश का लोकतांतित्रक प्रक्रिया समझाने चली है।
मानो संसद के अंदर एक ऐसी भीड़ जमा हो गई है जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर इस बात को पुख्ता कर रही है कि संसद के अंदर सारे सांसद देश को लूटने में लगे हैं। हमें आज इस बात को सोचने के लिए मजबूर कर रही है कि देश में लोकतंत्र को अब किस प्रकार बचाया जा सके। अब दो लोकतंत्र की लड़ाई आमने-सामने होती दिखाई देने लगी है। इस देश में अब साफ होता जा रहा है कि तमाम राजनैतिक दल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक होकर लोकतंत्र के माध्यम से ही लोकतंत्र पर कब्जा कर लोकतंत्र को ही ललकार रहे हैं। जयहिन्द!
  #2  
08-25-2011
Proud Indian's Avatar
Senior Member
 
: Feb 2011
: Chandigarh
:
: 312 | 0.07 Per Day

thanks shambhuji for such a motivating post


jai hind
  #3  
08-25-2011
Junior Member
 
: Aug 2011
: tamil nadu
: 36
:
: 9 | 0.00 Per Day

well said shambhuji.. ab to ye sansad hi dissolve ho jaye to kuch ho sakta he..

 



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