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अन्ना व उनकी टीम का शुक्रगुजार

अन्ना व उनकी टीम का शुक्रगुजार एक गांधी फिर यहाँ जन्म लेकर चल पड़ा है , देख लो सारा वतन .....



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  • 1 shambhuji
  • 1 sunil_mishra


  #1  
08-19-2011
shambhuji's Avatar
Member
 
: Jun 2011
: Kolkata
:
: 39 | 0.01 Per Day
Thumbs up अन्ना व उनकी टीम का शुक्रगुजार


अन्ना व उनकी टीम का शुक्रगुजार
एक गांधी फिर यहाँ जन्म लेकर चल पड़ा है
,
देख लो सारा वतन !
देश, फिर से उसके पीछे ही खड़ा है।
सरकार यह मानती है कि जैसे ही मां के पेट में बच्चा गर्भ धारन कर लेता है उसका सीधे आपरेशन कर दिया जाना चाहिए ताकी माँ की जान को कोई खतरा न हो। श्री अन्ना हजारे की सोच भी इसी खतरे की आशंका जाहिर कर रही थी कि कहीं श्री अन्ना हजारे गर्भ से निकलकर संसद की गरिमा के लिए खतरा न पैदा कर दें। कारण साफ था वाममोर्चा संसद इसलिए चलाना चाहती थी कि वे श्री जस्टीस सेन पर महा अभियोग ला सके। दूसरी तरफ भाजपा ने पहले ही साफ कर दिया था कि वे श्री अन्ना द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल बिल के कई बिन्दूओं से सहमत नहीं है। सत्ता पक्ष को इनके दरार का न सिर्फ लाभ ही मिल रहा है साथ ही सत्ता पक्ष श्री अन्ना को व इनके लाखों समर्थकों को भी कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है। इसी क्रम में कांग्रसी प्रवक्ता श्री मनीष तिवारी जी का श्री अन्ना के प्रति जहर उगलना व केंद्रीय मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय ने उन्हैं तो पागल तक कह डाला। जरा आप ही सोचिए यदि मनमोहन सरकार के प्रायः सभी मंत्रीगण जिसमें प्रमुख रूप से श्री कपिल सिब्बल जी, प्रणब दा, अम्बीका सोनी जी और विद्वान वोट बैंक की चिन्ता करने वाले श्री मान् दिग्विजय सिंह जी जैसे समझदारों की जमात भरी हो तो उसकी नैया खुद ही भगवान डूबा देगा। इसके लिए किसी पागल की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
डा
.मनमोहन सिंह ने लाल किले से 15 अगस्त को देश के नाम हिन्दी में एक संदेश पढ़े। उनकी बात विपक्षी सदस्यों को समझ में नहीं आयी या उनकी बात को वे शायद समझ नहीं सके। इसीलिए पुनः अगले ही दिन फिर उनको संसद में आकर बयान देने को कहा गया। विपक्ष सोचते हैं कि वें संसद को कभी न चलने देने के नाम पर, कभी चलने देने के नाम पर, देश की जनता को जिस प्रकार मुर्ख बनाते रहें हैं। उसी प्रकार कभी संसद की व्यवस्था धारा 72, तो कभी 184, कभी गृहमंत्री जी के बयान के नाम पर देश को गुमराह कर देश में लोकतंत्र की रक्षा कर रहें हैं।
महिला बिल हो या लोकपाल बिल
, कभी सहमति तो कभी असहमति, कभी दुहाई तो कभी गुमराह करते रहते हैं मानो देश की सारी जनता तो अनपढ़ और गंवार है। कुछ समझती तो है नहीं?
अब तो ऐसा आभास भी होने लगा कि जो लोग चुन कर संसद में जाते हैं या जिनकी राज्यसभा में लाटरी खुल जाती है वे ही देश के भाग्य निर्माता हैं बाकी सारे लोग या तो पागल हैं या उनके विचारों का कोई मूल्य नहीं है। कारण साफ है देश में संसद की मर्यादा ही सर्वापरि है, इसके बाद देश के मंत्री-संत्री आते हैं जिसकी आवभगत में सारा हिन्दुस्तान पलकें विछाए खड़े रहता है। चुनाव मे जीत क्या दर्ज हो जाती है ये रातों-रात अपने घर की छतों से ही छलांग लगाकर अकाश में पंहुच जातें हैं फिर तो पांच साल देश को लूटने का एक प्रकार से सरकारी आदेश इनकें हाथों में चुनाव आयोग थमा देता है। कभी-कभी राज्यों में भी ऐसा ही देखने को मिला है। जिसमें कुछ वर्षों पहले बिहार और अभी कर्नाटका राज्य में हमें देखने को मिला है।
खैर
! प्रधानमंत्री जी संसद में आये एक अंग्रजी में छपा-छपाया अपने बयान की प्रति संसद में खड़े होकर वितरित करवा दिए। उसको पढे़ और चल गये। कारण साफ था न तो विपक्ष में इतनी क्षमता है कि वे प्रधानमंत्री को कह सके कि साहेब अभी जातें कहां है? जनता की बात भी सुनते जाइए न ही इनमें कोई खुद की इच्छा शक्ति ही थी की वे संसद के अन्दर बैठे सांसदों का मान रख पाते। विपक्षी भाषण की कड़ी में एक मात्र श्री शरद यादव के भाषण को छोड़ कर सबने अपनी दाल ही गलाने की चेष्टा की बस। सरकार बार-बार चिल्लाती है कि श्री अन्ना संसदीय कार्यों पर अलोकतांत्रिक तरिके से दबाब बनाने का प्रयास कर रही है। कानून बनाने का कार्य संसद का है। तो किसने कहा कि आप कानून अन्ना जी के घर जाकर बनाऐं। जब लोकतंत्र के रक्षक देश की जनता के साथ अलोकतंत्रिक व्यवहार करने लगते हैं तब-तब देश की जनता सामने हो मुखर होती रही है। सरकार को देश के विकास की चिन्ता अचानक से सताने लगी। मंहगाई सर उठाकर सीना ताने खड़ी है। भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पार कर चुका है। देश के प्रधानमंत्री जी खुद अर्थशास्त्री हैं इसलिए देश की अर्थ व्यवस्था भी इनके चिन्ता का कारण है। इन सबमें सबसे बड़ी चिन्ता इनको लोकतंत्रिय ढांचे को चुनौति की है। जब इतनी सारी चुनौतियों का सामना इनको करना ही था तो एक नई चुनौति और क्यों पैदा कर ली सरकार ने। अभी भी समय है कि संसद के बेइमानों को विश्वास में न लेकर प्रधानमंत्री जी जनता को विश्वास में लें। संसद का अर्थ होता है लोकतंत्र और लोकतंत्र में जनता सर्वोच्य होती है न कि मंत्रिमंडल। बाबा रामदेव को जिस लाठी से आपके शातिरों ने हांकने की चेष्टा की उसी रणनीति को आप अन्नाजी पर प्रयोग करने की भूल कर रहें हैं। संभवतः कहीं यह आपकी सरकार की कब्र न खोद डाले।
मेरे बहुत सारे पत्रकार संपादकों ने भी यह प्रश्न खड़ा किया कि
‘‘पांच सदस्यों की टीम की बात आखिर क्यों सुनी जाए? इस प्रकार तो हर कोई खड़ा होकर बोलने लगेगा कि अमूक कानून बनाओ।’’ भाई! या तो इनलोगों ने अपनी कलम को सरकार के पास गिरवी कर रखी है या फिर इनका दिमाग खाली हो चुका है। देश में पाँच की बात तो छोड़िये जनाब एक दो राज्य सरकारें भी मिलकर चेष्टाकर के दिखा दिजिए की वे संसद से अपने मन चाहा कानून पास करवा लेवें। महिला बिल पर पूरी संसद एक है सिर्फ 20-25 सांसदों ने धमकी क्या दी सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए। जिस बात को लेकर ये लोग बहस चला रहें है उसमें जयप्रकाश जी के आन्दोलन से अन्ना के आन्दोलन की तूलना भी की जा रही है। शायद या तो ये लोग जानबूझ कर अनजान बने हुए हैं या सोचते है कि वे जो कहते हैं जनता सिर्फ इतना ही पढ़ती और जानती है।
स्व
.जयप्रकाश नारायण जी का आन्दोलन आपातकाल की स्थिति से पैदा हुआ था, जिसमें तमाम विपक्ष को सरकार ने जेलों में बन्द कर दिया था इसलिए तमाम विपक्ष एकजूट होकर स्व.जयप्रकाश के आंदोलन को अपने स्वार्थ के लिए हवा दे रही थी। जबकि आज के आंदोलन को एक मात्र अन्ना हजारे चला रहें हैं और सारा देश एक रात में अन्ना-अन्ना हो गया। इसमें न तो किसी विपक्ष का ही सहयोग है ना ही किसी राजनैतिक पार्टी से श्री अन्ना ने सहयोग ही मांगा है। हां! लोकतंत्र में आस्था यदि नहीं होती तो वे अपना पहला अनशन समाप्त ही क्यों करते? सरकार के साथ टेबल पर बैठने का सीधा सा अर्थ था कि लोकतंत्र में आस्था व्यक्त करना। न सिर्फ अन्ना की टीम सरकार से बातें की। विपक्ष के सभी प्रमुख दलों से भी मिलकर अपनी बातों को उनके सामने रखा। इसके बावजूद सरकार ने संसद मे बिल प्रस्तावित कर दिया तो इस पर बहार बहस नहीं हो सकती यह किस कानून में लिखा है? दहेज कानून तो आज भी बन जाने के बाद बहस का मुद्दा बना हुआ है इसी प्रकार जमीन अधिग्रहण कानून अपनी मुंह के बल चारों खाने चित होकर रो रहा है। उच्चतम न्यायालय जो कभी इस कानून के पक्ष में एकतरफा फैसला दिया करता था आज उसने भी कह दिया कि यह कानून देश के साथ एक धोखा है।
देश की जनता जब अपने मूंह पर पटी बांध ले तो या तो आप इसे विरोध कह दिजीए या इन्हें गूंगा इसके दोनों ही अर्थ निकाले जा सकते हैं। यह सोचने और समझने की बात है। अन्ना आज यदि देश को गुमराह कर रहे हैं तो देश का कोई एक नेता तो सामने आकर जनता को समझा सके कि अन्ना की बात पर आपलोग अपने घरों से न निकले। कल मैंने अपनी आंखों से कोलकाता शहर में देखा कि जो लोग कभी राजनीति पर बोलना नहीं चाहते वे गांधी टोपी पहने कर मरने मारने को तैयार खड़े थे। इस सरकार को अन्ना व उनकी टीम का शुक्रगुजार होना चाहिये कि आज के युवाओं के माथे पर गांधी टोपी पहनाकर केन्द्र की लापरवाही से विकाराल रूप धारण करते इस आंदोलन को अहिंसा का पाठ पढ़ा दिया। जबकि जयप्रकाश जी का आन्दोलन या श्री वी
.पी.सिंह के आंदोलन में सिर्फ हिंसा के अलावा कुछ नहीं था। हाँ! देश की संसद में बैठ कर खुद को जो लोग सुपर पावर समझ बैंठे हैं उनके पास अभी भी समय है कि वे देश के कुछ जाने-माने लोगों को विश्वास में लेकर टीम अन्ना के सदस्यों से राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए उनके सूझाए गए प्रस्तावों पर गंभीर चर्चा जल्द से जल्द प्रारंभ करें अन्यथा यह आग संसद की मर्यादा पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ी कर सकती है। आज इसे जो लोग फेसबुक का फैशन समझ रहे हैं उनकी जमीन न हिला दे यह फेसबुक। अभी हाल ही दो देशों में इसका जमकर युवाओं ने प्रयोग किया और सरकार 21 दिनों में ही सतह पर खड़ी दिखाई देने लगी। जबकि वहां लोकतंत्र था ही नहीं सारे मीडिया वाले व पत्रकार सरकार के बंधुवा मजदूर थे। भारत में तो लोकतंत्र है इस बात को मेरे मित्र जरा ध्यान में रखेगें तो अच्छा रहेगा।
जय हिन्द
!
-- कोलकात, दिनांकः 17 अगस्त’2011 द्वारा - शम्भु चौधरी

Last edited by shambhuji; 08-19-2011 at 11:35 AM : setting
  #2  
08-19-2011
Senior Member
 
: Apr 2011
: gwalior
: 55
:
: 711 | 0.15 Per Day
"Anna the real son of Bharat Mata"

"Gentle Men ! Since last 63 years Politician are dividing india to rule and plundering india to deposite money in swiss banks. This is the Hon'ble Anna the real son of Bharat Mata made india once again united. What a great achievment is this.............We should sent "v" with Bande Matram to Hon'ble anna and his all followers...........Bande Matram."
  #3  
08-19-2011
Proud Indian's Avatar
Senior Member
 
: Feb 2011
: Chandigarh
:
: 312 | 0.07 Per Day

Jai Hind , Long Live Anna
  #4  
08-22-2011
Junior Member
 
: Jun 2011
: Mp
: 34
:
: 2 | 0.00 Per Day

Inklab jindabad




bande matram

jay hind
anna tum sangharsh karo ham tumhare sath hain..............

 



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