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संपादक भी मुँह चुराकर भागे -शम्भु चौधरी

लोकपाल बिल पर सरकार इतनी ईमानदार दिखती है तो केन्द्रीय कानून मंत्री बिल में सुझाये गये सरकारी प्रवधानों की जानकारी .....




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06-30-2011
shambhuji's Avatar
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: Jun 2011
: Kolkata
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: 39 | 0.01 Per Day
Thumbs up संपादक भी मुँह चुराकर भागे -शम्भु चौधरी


लोकपाल बिल पर सरकार इतनी ईमानदार दिखती है तो केन्द्रीय कानून मंत्री बिल में सुझाये गये सरकारी प्रवधानों की जानकारी प्रेस के माध्यम से जनता को दें और बताये कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जन आन्दोलन में किस तरह से वे भी जनता के साथ हैं। बजाय इसके गोलबंध की राजनीति करें। कल जिन संपादकों को प्रधानमंत्री की गुप्त दावात खाने मिली वे लोग जब बाहार आये तो मुँह छुपाते फिरे मानो किसी बदनाम महखाने से निकले हों कि कोई इनको देख न लें। देश आज नये युग की तरफ करवट बदल रहा है एक तरफ लोकतंत्र को बेचने वालों की जमात है तो दूसरी तरफ लाचार और बेबस आवाज। हमें अब तय करना है कि हमें किसका साथ देना है।

अब तो आपको यह बात साफ हो गई होगी कि मैंने पिछले लेख में समाचार पत्र व मीडिया पर यह आरोप क्यों लगाया कि - ‘‘कोई इनको लोकतंत्र का रक्षक कहे तो सुनने में भी अब शर्म आने लगी’’ कल कि घटना से अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि ये शेर की घाल में भेड़िये छुपें हैं जो पत्रकारिता की आड़ में सत्ता के सौदागर बन गये हैं आज देश में एक तरफ भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पंहुच गया है सत्ता पक्ष के मंत्रीगण, व्यापारी और दर्जनों अधिकारी लाखों की हेरा-फेरी में जेलों में बन्द हैं और देश के सबसे कमजोर भ्रष्टों के सरदार निर्लज प्रधानमंत्री संसद में बयान देते हैं कि ‘‘यह गठबंधन धर्म की मजबूरी है।’’ मजे की बात लोकपाल बिल का जो ड्राफ्ट सरकारी पक्ष ने तैयार किया है उनमें इन पर मुकद्दमा चलाने का कोई प्रवधान ही नहीं दिया गया है। मजे कि बात तो यह है कि सारा मामला संसद की प्रतिष्ठा से जोड़ कर या समानान्तर सरकार चलाने जैसी बातों में तो सांप्रदायिकता से जोड़ कर देश के पढ़े-लिखे समझदार संपादकों से राय ली जा रही है कि वे देश को किसी तरह बचायें अन्यथा सिविल सोसाइटी के चन्द लोग देश में संसद की मर्यादा को ही समाप्त कर देगें? भाई! किस बात की मर्यादा? क्या समाज क सदस्य संसद का रास्ता रोक रहें हैं या संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रहें हैं? देश में संविधान बनाने का अधिकार जिनको प्राप्त है समाज के सदस्य सिर्फ उनकों ही तो अपनी बात कह रहें हैं। तो वे सांप्रदायिक कैसे हो गये? इसका अर्थ है कि संसद में सिर्फ वे ही लोग जा सकते हैं जो साम्प्रदायिक नहीं हो। ये वोट बैंक की राजनीति छोड़े कांग्रसी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सीध-सीधी बात करें। अब वे नहीं मानते तो समाज के सदस्य संसद में तो जाकर चिल्ला तो नहीं सकते। संसद के बाहार ही अपनी बात कहेगें तो इसमें कौन सा अपराध हो गया? क्या देश की जनता को इतना भी अधिकार नहीं है कि वे जनता को यह बता सके कि लोकपाल बिल में जो बात जनता चाहती है वह नहीं बल्कि जनता को ही सजा देने का प्रवाधान उसमें है। लोकपाल बिल पर सरकार इतनी ईमानदार दिखती है तो केन्द्रीय कानून मंत्री बिल में सुझाये गये सरकारी प्रवधानों की जानकारी प्रेस के माध्यम से जनता को दें और बताये कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ इस जन आन्दोलन में किस तरह से वे भी जनता के साथ हैं। बजाय इसके गोलबंध की राजनीति करें। कल जिन संपादकों को प्रधानमंत्री की गुप्त दावात खाने मिली वे लोग जब बाहार आये तो मुँह छुपाते फिरे मानो किसी बदनाम महखाने से निकले हों कि कोई इनको देख न लें। देश आज नये युग की तरफ करवट बदल रहा है एक तरफ लोकतंत्र को बेचने वालों की जमात है तो दूसरी तरफ लाचार और बेबस आवाज। हमें अब तय करना है कि हमें किसका साथ देना है।
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Last edited by shambhuji; 06-30-2011 at 11:48 AM : mistec

 




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