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जन लोकपाल बिल के बारे में पूछे जाने वाले प्

क्या लोकपाल एक तानाशाह (supercop) की तरह है? ऐसा कहा जा रहा है कि प्रास्तावित जन लोकपाल एक सुपरकॉप यानी .....




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04-17-2011
Junior Member
 
: Apr 2011
: Ghaziabad
:
: 3 | 0.00 Per Day
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क्या लोकपाल एक तानाशाह (supercop) की तरह है?
ऐसा कहा जा रहा है कि प्रास्तावित जन लोकपाल एक सुपरकॉप यानी तानाशाह की तरह हो जाएगा और यह तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए एक ख़तरा बन जाएगा। इस तरह की बातें बिल्कुल ग़लत हैं। आइए जानते हैं कि आख़िर जन लोकपाल बिल है क्या और इसमें लोकपाल की क्या भूमिका होगी?
1. मौजूदा व्यवस्था के तहत केंद्रीय सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार से निपटने की ज़िम्मेदारी सीबीआई पर है। सीबीआई भ्रष्टाचार निरोधक क़ानूऩ के अंतर्गत केस दर्ज करता है। इसके पास जांच करने के साथ-साथ मुक़दमा दर्ज करने की शक्ति भी है। लेकिन सीबीआई पर केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण होता है। कोई भी जांच शुरू करने या किसी मामले में कार्रवाई करने से पहले इसे कुछ लोगों से इजाज़त लेनी पड़ती है। मज़े की बात है कि कई बार इजाज़त देने वाले वही लोग होते हैं, जिनके ख़िलाफ़ ही वे आरोप होते हैं। सीबीआई को स्वतंत्र करने की मांग लंबे समय से चल रही है। विनीत नारायण मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को निर्देश दिया था कि सीबीआई को स्वतंत्र किया जाए।

तो क्या सीबीआई को स्वतंत्र नहीं किया जाना चाहिए?
हमारा प्रस्ताव है कि सीबीआई का वो हिस्सा जो भ्रष्टाचार से जुड़े मामले देखता है, को सीबीआई से अलग कर देना चाहिए और इसका प्रास्तावित लोकपाल में विलय कर देना चाहिए। इससे लोकपाल की जांच शाखा (investigation wing) तैयार हो जाएगी। यह शाखा सीधे लोकपाल को रिपोर्ट करेगी। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मामले की जांच और उस पर होने वाली कार्रवाई पूरी तरह स्वतंत्र और बग़ैर किसी दबाव के है। किसी भी जांच के पूरी होने पर, यदि मामला बनता है, तो चार्जशीट साधारण ट्रायल कोर्टों में दायर की जाएगी। ट्रायल कोर्ट का फैसलों को ऊपरी अदालतों में उसी तरह चुनौती दी जा सकेगी, जैसा कि बाक़ी केसों में होता है। यानी यह कहा जाना कि लोकपाल ख़ुद किसी मामले में कोई फैसला सुनाएगा, पूरी तरह ग़लत है। लोकपाल फैसले नहीं सुनाएगा।

2. आम लोगों की मान्यता के उलट केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी का भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून से कोई लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ सतर्कता (vigilance) के मामले देखता है, जिसमें केवल जुर्माना लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार के हर विभाग में एक सतर्कता खंड (vigilance wing) होता है। ये सतर्कता खंड दो स्त्रोतों से शिक़ायतें प्राप्त करता है- 1. सीधे जनता से, और 2. सीवीसी की तरफ से भेजी गईं वो शिक़ायतें जो उस विभाग से संबंधित होती हैं। कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए, तो सीवीसी ख़ुद किसी मामले में पूछताछ नहीं करता। यह काम संबंधित विभागों की विजिलेंस विंग ही करती हैं। कोई भी पूछताछ शुरू करने या जुर्माना लगाने से पहले विजिलेंस विंग सीवीसी से सलाह लेती हैं। सीवीसी की सिफ़ारिशें भी सिर्फ़ सलाह से ज़्यादा कुछ नहीं होतीं। अगर सीवीसी किसी मामले में या किसी अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई सख़्त सिफ़ारिश कर भी दे, तो भी अंतिम निर्णय का अधिकार उस विभाग के प्रमुख पर ही होता है। यहां यह जान लेना ज़रूरी है कि जुर्माना लगाने का कोई भी मामला अदालत में नहीं जाता। इसका मतलब है कि अगर भ्रष्टाचार के किसी मामले में विभाग के आला अधिकारी शामिल हों, तो उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई शायद ही कभी हो पाए, भले ही सीवीसी कार्रवाई की सलाह दे चुका हो। यहां तक कि विजिलेंस विंग की जांच भी ईमानदारी से नहीं हो पाती क्योंकि विजिलेंस अधिकारी अपने सहकर्मियों और सीनियरों के ख़िलाफ़ निष्पक्षता से जांच नहीं कर पाते।

यह मांग काफी पुरानी है कि सीवीसी की सिफ़ारिशें बाध्यकारी होनी चाहिएं। साथ ही, विजिलेंस विंग को स्वतंत्र किया जाना चाहिए ताकि निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकें।

जन लोकपाल बिल में हम इसी मसले पर अपनी बात कह रहे हैं। हमारा मानना है कि सीवीसी और तमाम विभागों की विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद यह लोकपाल की विजिलेंस विंग बन जाएगी, जोकि पूरी तरह स्वतंत्र होगी। हमारा यह भी प्रस्ताव है कि यह विजिलेंस विंग सलाह देने की बजाय सीधे आदेश दे।
एक बार जब सभी विभागों की विजिलेंस विंग्स लोकपाल के अंतर्गत आ जाएंगी, तो जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सकेगी। लोकपाल अपनी विजिलेंस विंग के अधिकारियों से उन शिक़ायतों की जांच नहीं करवाएगा, जो उसके मूल विभाग से संबंधित हों। मिसाल के तौर पर एमटीएनएल के किसी अधिकारी के बारे में किसी शिक़ायत की जांच रेलवे के कर्मचारी को सौंपी जा सकती है।
ग़ौरतलब है कि इस विजिलेंस विंग के पास सिर्फ़ नौकरशाहों के ख़िलाफ़ जुर्माना लगाने का अधिकार (जो पहले विभाग प्रमुखों के पास हुआ करता था) होगा। नेताओं और न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ विजिलेंस विभाग कोई कार्रवाई नहीं करेगा। इन लोगों की जांच भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत लोकपाल की जांच शाखा (investigative wing) करेगी। अगर कोई मामला बनता है, तो केस सामान्य कोर्टों में चलेंगे।

3. मौजूदा व्यवस्था के तहत सीवीसी, विभागीय विजिलेंस विंग्स और सीबीआई के भीतर भी भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। इस अंदरूनी भ्रष्टाचार से निपटने का कोई प्रभावशाली तरीका मौजूद नहीं है। हमारा प्रस्ताव है कि लोकपाल का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी हो। एक बार जब किसी केस की पूछताछ या जांच पूरी हो जाए, उस केस से जुड़े सभी रिकॉर्ड्स जनता के सामने पेश कर दिए जाने चाहिए। हमारा यह भी प्रस्ताव है कि अगर लोकपाल के किसी कर्मचारी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की शिक़ायत आती है, या उस पर किसी मामले की जांच ईमानदारी से नहीं करने के आरोप लगते हैं तो उसकी सुनवाई भी लोकपाल सदस्यों के एक बेंच द्वारा की जानी चाहिए। इस तरह की शिक़ायतों पर पूछताछ की प्रकिया एक महीने के भीतर पूरी कर ली जाए और आरोप सिद्ध होने पर अगले एक महीने के भीतर उस कर्मचारी को दंडित कर किया जाए। लोकपाल अध्यक्ष और इसके सदस्य संस्था की ईमानदारी को बनाए रखने के ज़िम्मेदार होंगे।

4. मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत सीवीसी का अधिकार क्षेत्र सिर्फ़ अधिकारियों तक सीमित है। राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार इसके दायरे में नहीं आते। हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार में अफ़सर और नेता, दोनों शामिल होते हैं। अक्सर एक ही मामले की जांच सीबीआई और सीवीसी दोनों करते हैं, जो संसाधनों की बर्बादी है। आपने देखा होगा कि कॉमनवेल्थ खेलों की जांच पहले सीवीसी ने की, फिर सीबीआई ने और फिर उन्हीं मामलों की जांच के लिए शुंगलू कमेटी बनाई गई। लेकिन इन सबका क्या नतीजा निकला, हम सबके सामने है। इसलिए हमारा मत है कि सीवीसी और सीबीआई, दोनों को लोकपाल के अंतर्गत ला दिया जाना चाहिए।

संक्षेप में, लोकपाल के पास निम्नलिखित शक्तियां होंगी:
अ. अधिकारियों के ख़िलाफ
1. भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत जांच करना और मुक़दमा चलाना। इसके बाद केस सामान्य कोर्टों में ही चलेंगे और सज़ा भी वही कोर्ट देंगी।
2. कंडक्ट रूल्स के अंतर्गत: पूछताछ करना और जुर्माना लगाना, जो फिल्हाल विभाग प्रमुखों द्वारा किया जाता है।
ब. राजनीतिज्ञों के ख़िलाफ़: भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के अंतर्गत जांच करना और मुक़दमा चलाना। केस सामान्य कोर्टों में चलेंगे और सज़ा का ऐलान भी वही कोर्ट करेंगी।
स. न्यायाधीशों के खिलाफ़: भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के अंतर्गत जांच करना और मुक़दमा चलाना। केस सामान्य कोर्टों में चलेंगे और सज़ा का ऐलान भी वही कोर्ट करेंगी।
उपरोक्त बातों से यह साफ़ हो जाता है कि जन लोकपाल बिल के ज़रिये हम सिर्फ़ मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक प्रणाली की कमियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। इन बातों की मांग हमारे देश में लंबे समय से की जा रही है और इनकी वक़ालत कई अदालतों ने भी समय-समय पर की है। हम लोकपाल को कोई नया अधिकार नहीं देने की बात नहीं कर रहे। लोकपाल को सिर्फ़ ईमानदार, पूर्वाग्रह से रहित और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करनी है। लोकपाल को सज़ा देने का अधिकार बिल्कुल नहीं होगा। इसलिए ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान न दें।
क्या लोकपाल को न्यायपालिका से ज़्यादा ताक़त होगी? क्या जन लोकपाल बिल न्यायपालिका जवाबदेही बिल को ग़ैर ज़रूरी बना देगा?
मौजूदा व्यवस्था में, अगर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जज पर घूस लेने का आरोप लगता है, तो उस जज के ख़िलाफ़ एक साधारण पुलिसकर्मी भी केस दर्ज कर सकता है। उस जज के ख़िलाफ़ जांच कर शुरू कर सकता है और मुक़दमा दायर कर सकता है। मगर शर्त यह है कि ऐसा करने के लिए उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश (chief justice of india) से अनुमति लेनी होगी। इस तरह की अनुमति लेने की बात किसी क़ानून में नहीं लिखी है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए ऐसा करना ज़रूरी बना दिया था। यह ठीक बात है कि न्यायधीशों को छोटे-मोटे आरोपों से दूर रखा जाना चाहिए, लेकिन यह भी देखा गया है कि कई बार ठोस सबूतों के बावजूद मुख्य न्यायाधीशों ने केस दर्ज करने के लिए मंज़ूरी देने में आनाकानी की है।
हमारा प्रस्ताव है कि केस दर्ज करने के बारे में अनुमति देने की शक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के बजाय लोकपाल की पूरी बेंच के हाथों में होनी चाहिए। स्वतंत्र और पर्याप्त रूप से वरिष्ठ लोगों की संस्था ज़्यादा ईमानदारी से निर्णय ले सकेगी। हमारा यह भी मत है कि एक साधारण पुलिसकर्मी किसी जज के ख़िलाफ़ केस दर्ज करने, जांच करने और मुक़दमा दायर करने जैसी कार्रवाई न करे। यह काम लोकपाल के अंतर्गत आने वाली कोई विशेष टीम करे जिसकी अगुवाई कोई वरिष्ठ अधिकारी कर रहा हो। इससे जांच ईमानदार होने के साथ-साथ ज़्यादा पेशेवर तरीके से भी हो सकेगी। हालांकि लोकपाल के पास सज़ा देने का अधिकार तब भी नहीं होगा। ये अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ अदालतों के पास ही रहेगा जैसा कि किसी भी अन्य केस में होता है।
ऐसी बातें भी की जा रही हैं कि हम लोकपाल को शक्तिशाली बनाकर न्यायाधीशों को हटाना चाहते हैं। हमारा ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। जजों को हटाने की प्रकिया भारतीय संविधान के मुताबिक महाभियोग के ज़रिये ही की जा सकती है। इसमें किसी बदलाव का प्रस्ताव नहीं है।
उपरोक्त प्रस्तावों से न्यायपालिका जवाबदेही बिल (judicial accountability bill) की प्रांसगिकता कतई कम नहीं होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि न्यायपालिका जवाबदेही बिल का संबंध जजों के पेशेवर कदाचारों (professional misconduct) से है न कि घूसख़ोरी जैसे भ्रष्टाचार के मामलों से। न्यायपालिका जवाबदेही बिल में भी जजों को हटाने की बात है। हमने उन बातों को जन लोकपाल बिल में शामिल नहीं किया है। यानी, जन लोकपाल बिल न्यायपालिका जवाबदेही बिल को अप्रासंगिक नहीं बनाएगा, बल्कि उसे पूर्ण करेगा।
  #2  
04-17-2011
Junior Member
 
: Apr 2011
: Ghaziabad
:
: 3 | 0.00 Per Day
Thumbs up Continued...

क्या जन शिक़ायतों को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए? इससे तो लोकपाल का काम बोझिल और दुष्कर हो जाएगा।
जन लोकपाल के अंतर्गत जन शिक़ायतों से निपटने के लिए निम्नलिखित व्यवस्था होगी:
1. हर विभाग अपने नागरिक चार्टर को दोबारा तैयार करे। इसमें इस बात का ज़िक्र हो कि किसी नागरिक का कोई काम कितने समय में पूरा कर दिया जाएगा और इस काम को करने के लिए कौन सा अधिकारी ज़िम्मेदार है।
2. अगर कोई नागरिक सिटिजन्स चार्टर में लिखित बातों के हिसाब से अपना काम पूरा होता नहीं पाता है, तो वह उस अधिकारी के ख़िलाफ़ जन शिक़ायत अधिकारी के पास शिक़ायत कर सकता है। जन लोकपाल बिल के तहत हर विभाग को जन शिक़ायत अधिकारी के रूप में एक वरिष्ठ अधिकारी हर केंद्र पर तैनात करना होगा।
3. जन शिक़ायत अधिकारी को शिक़ायतों का निपटारा अगले 30 दिनों के भीतर करना होगा।
4. अगर जन शिक़ायत अधिकारी ऐसा नहीं करता है, तो वह नागरिक विजिलेंस ऑफिसर के पास जा सकता है। यह विजिलेंस अधिकारी भले ही उस विभाग में तैनात हो, लेकिन वह लोकपाल की तरफ से होगा। (कृपया ध्यान दें कि हम तमाम विभागों की विजिलेंस विंग्स को लोकपाल के अंतर्गत लाने की बात कह रहे हैं। विभागीय विजिलेंस विंग्स की तरफ़ से ज़्यादातर केंद्रों पर विजिलेंस अफ़सर तैनात होते हैं। अगर कहीं अफ़सर नहीं हैं, तो लोकपाल विजिलेंस अफ़सरों की नियुक्ति करेगा)
5. अगर कोई शिक़ायत विजिलेंस अफ़सर तक पहुंचती है, तो यह मान लिया जाए कि शिक़ायत का निपटारा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि इसके बदले में रिश्वत की मांग या उम्मीद की गई है।
6. विजिलेंस अफ़सर की ज़िम्मेदारी होगी कि वह शिक़ायत का निपटारा 30 दिनों के भीतर करे। साथ ही जन शिक़ायत अधिकारी और उस अधिकारी के ख़िलाफ़ जुर्माना भी लगाए जिसने नागरिक चार्टर के हिसाब से काम नहीं किया। इस तरह वसूल की गई जुर्माने की रक़म को शिक़ायतकर्ता को मुआवज़े देने और प्रकिया के ख़र्चों के भुगतान के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
7. अगर शिक़ायतकर्ता विजिलेंस अधिकारी से भी संतुष्ट नहीं होता है, तो वह मुख्य सतर्कता अधिकारी यानी सीवीसी के पास जा सकता है, जोकि अंतिम पड़ाव है।

यानी कोई भी शिक़ायत सीधे लोकपाल सदस्यों तक नहीं पहुंचेगी। इस तरह की आशंकाएं कि लोकपाल के पास हज़ारों शिक़ायतें पहुंचेंगी और यह व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, पूरी तरह निराधार हैं। हर विभाग की तरफ़ से हर केंद्र पर एक विजिलेंस अफ़सर होगा। जन शिक़ायतों का अंबार लोकपाल की पूरी व्यवस्था को बाधित नहीं करेगा। हां संभव है कि कुछ जगहों पर कुछ विजिलेंस अफ़सरों के पास शिक़ायतें ज़्यादा पुहंचने लगें। ऐसी सूरत में अगर लोकपाल ज़रूरी समझे तो उसे और विजिलेंस अफसरों की नियुक्ति का अधिकार होगा। साथ ही हम सिर्फ़ उन्हीं शिक़ायतों को लोकपाल के दायरे में रखेंगे, जिनका ज़िक्र नागरिक चार्टर में होगा।



वन्दे मातरम,
Ankit Lal,
IAC.
  #3  
04-22-2011
Senior Member
 
: Apr 2011
: gwalior
: 55
:
: 711 | 0.15 Per Day

anthing done in order to make india free from corruption is a good approach in mine opinion..................
  #4  
04-30-2011
Junior Member
 
: Apr 2011
: 61
:
: 12 | 0.00 Per Day

लोकपाल बिल बनाने में सर्तकता बहुत जरूरी है वर्ना आसमान से गिरे और खजूर पर जा अटके वाली बात साबित हो जायेगी। लोकपाल से लोकतांत्रिक संस्*थाओं को कोई नुकसान हुआ तो देश बदहाली के कगार पर भी जा सकता है।
  #5  
05-17-2011
Member
 
: May 2011
: New Delhi
:
: 50 | 0.01 Per Day
Thumbs up Good job Ankit

Your efforts are commendable in putting summary of Jan Lokpal Bill here in Hindi. Did not know that you blog also. See you in the next meeting of IAC.

We also have to plan to start screening of the new 30min movie on the bill in public places of Delhi starting from next week in addition to work on RWA. So much work to be done and time is running out. We need to speedup our pace.

 



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