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Some FAQ's about the movement answered.साथियों, पिछले कुछ दिनों से इंडिया अगेन्स्ट करप्शन मुहिम के ख़िलाफ़ नकारात्मक और भ्रामक प्रचार किए जा रहे हैं। लोगों ..... |
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Some FAQ's about the movement answered.
साथियों, पिछले कुछ दिनों से इंडिया अगेन्स्ट करप्शन मुहिम के ख़िलाफ़ नकारात्मक और भ्रामक प्रचार किए जा रहे हैं। लोगों के बीच तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। अन्ना हजारे जी ने ख़ुद देशवासियों से शांत और एकजुट रहने की अपील की है। यहां हम कुछ बातों को आपके सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं ताकि आप अपने विवेक से फैसला कर सकें कि क्या सही है और क्या ग़लत। 1. अन्ना का अनशन एक तरह की ब्लैकमेलिंग है, और यह लोकतांत्रिक प्रकिया में बाधक है। लोकतंत्र में हर नागरिक उसकी ज़िंदगी से जुड़े फैसलों में अपनी बात रख सकता है। हमें इस बात को समझना होगा कि लोकतंत्र में सिर्फ़ जनता के नुमाइंदे ही देश नहीं चलाते, बल्कि इसमें हर किसी की भागीदारी होती है। चुने हुए लोग जैसे सांसद, विधायक और निगम पार्षद आदि जनता के सेवक होते हैं, जिन्हें जनता की इच्छा के हिसाब से अपने दायित्वों को निभाना होता है। अगर वो ख़ुद को राजा समझने लगें और फैसलों को जनता पर यह कहकर थोपने लगे कि उन्हें तो जनता ने ही चुना है, तो यह सही नहीं होगा। ऐसी सूरत में जनता उनसे सवाल पूछ सकती है, और उसे फैसले वापस लेने का हुक़्म दे सकती है। सरकारी कामों में पारदर्शिता और जवाबदेही न होने से इस आंदोलन का जन्म हुआ। अन्ना हजारे ने जंतर-मंतर से पूरे देश को एकुजट किया। हज़ारों लोग इस गांधीवादी शख़्स के आंदोलन में शामिल होने के लिए वहां पहुंचे। दिल्ली पुलिस के मुताबिक उसने इस तरह का शांतिपूर्ण प्रदर्शन पहले कभी नहीं देखा था। (देखिए लिंक http://www.hindustantimes.com/Most-p...3.aspx)। पूरे प्रदर्शन के दौरान न तो कहीं ट्रैफिक जाम लगा, न रेलवे ट्रैकों पर क़ब्ज़ा किया गया और न ही कहीं हिंसा की एक भी घटना हुई। यही हमारे लोकतंत्र की ख़ूबसूरती और विरोध का सही गांधीवादी तरीका है। अन्ना के अनशन ने उन लोगों को छुआ जो अन्याय और भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे हैं। भारी जन समर्थन की वजह से सरकार हरक़त में आने के लिए मजबूर हुई। अब आप ही तय कीजिए कि क्या यह अलोकतांत्रिक है? क्या यह असंवैधानिक है? 2. इंडिया अगेन्स्ट करप्शन को आंदोलन पर जाने से पहले सरकार से इस बारे में बातचीत करनी चाहिए थी। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कड़ा क़ानून बनाने के लिए अन्ना हजारे ने प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी को कई चिट्ठियां लिखीं। लेकिन एक भी चिट्ठी का कोई जवाब नहीं मिला। आख़िरकार जब अन्ना ने प्रधानमंत्री को लिखा कि वो आमरण अनशन पर जा रहे हैं, तो सरकार की नींद खुली और प्रधानमंत्री ने अन्ना से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात को कोई नतीजा नहीं निकला। मुलाक़ात के बाद अन्ना ने प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखी। (देखें- http://indiaagainstcorruption.org/blog/?p=921) इसलिए ऐसा कहना ग़लत है कि आमरण अनशन पर जाने से पहले हमने बातचीत की कोशिश नहीं की। (चिट्ठियां यहां से डाउनलोड की जा सकती हैं http://indiaagainstcorruption.org/index.php) 3. क्या हम किसी राजनीतिक दल या धार्मिक संगठन से जुड़े हैं? अभियान को बदनाम करने के लिए इस तरह के ढेरों दुष्प्रचार किए जा रहे हैं। हम यहां बिल्कुल साफ़ कर देना चाहते हैं कि इस अभियान का बीजेपी या आरएसएस जैसे संगठनों से कोई संबंध नहीं है, जैसे कि आरोप लगाए जा रहे हैं। अभियान का झुकाव भी किसी राजनीतिक दल की तरफ़ नहीं है। यह अभियान पूरी तरह धर्म निरपेक्ष और बिना किसी पक्षपात के चलाया जा रहा है। अभियान की धर्म निरपेक्षता का एक प्रमाण यह भी है कि जंतर-मंतर पर अनशन के दौरान हर शाम एक सर्व धर्म प्रार्थना होती थी। मुफ़्ती शमूम क़ासमी और दिल्ली के आर्क बिशप एम कंसेसाओ इस अभियान के सूत्रधारों में शामिल है जबकि जनाब महमूद ए मदानी इसके एक सक्रिय समर्थक हैं। 4. फिर अन्ना ने मोदी और नीतीश की तारीफ़ क्यों की? मोदी के बारे में अन्ना का बयान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछे गए किसी सवाल के जवाब में था। उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा था कि बिहार और गुजरात के ग्रामीण इलाक़ों में अच्छा काम किया गया है। अन्ना ने स्पष्ट कर दिया था कि उनका यह बयान इन दो राज्यों के बारे में मीडिया में छप रही ख़बरों पर आधारित था। उन्होंने यह भी साफ़ किया था कि वो सामाजिक भाईचारे में विश्वास रखते हैं और किसी भी तरह की सांप्रदायिक हिंसा के ख़िलाफ़ हैं। 5. सिविल सोसाइटी की ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य किस आधार पर चुने गए? यह पूरा आंदोलन जन लोकपाल बिल से संबंधित है। लिहाज़ा ड्राफ्टिंग कमेटी में ऐसे लोगों का होना ज़रूरी है जो इस बिल की हर दफ़ाओं और अनुच्छेदों की व्याख्या कर सकें। इसलिए कमेटी में उन्हीं लोगों को शामिल किया गया है जिन्होंने बिल को ड्राफ्ट किया है। अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल, जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और शांति भूषण के इस कमेटी में होने की वजह यही है। 6. इस क़ानून के बाद क्या लोकपाल तानाशाह (super cop) नहीं हो जाएगा? कहा जा रहा है कि लोकपाल के पास ज़रूरत से ज़्यादा शक्तियां हो जाएंगी जबकि उसकी जवाबदेही शून्य होगी। यह एक ग़लत धारणा है कि प्रास्तावित लोकपाल के पास न्यायपालिका के अधिकार होंगे। इस तरह का कोई प्रावधान इस बिल में नहीं है। लोकपाल की भूमिका यह होगी कि वह ऊंची से ऊंची रसूख़ वाले आरोपितों के ख़िलाफ़ जांच करके मुक़दमा दायर कर सके। कोई भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके लोकपाल को ऐसा करने से रोक न सके। 7. लोकपाल की जवाबदेही कैसे तय की जाएगी? इस बिल में लोकपाल को जवाबदेह बनाया जाएगा। पहला, उसे अपना कामकाज पारदर्शी तरीके से करना होगा ताकि लोगों को इसके बारे में पता चल सके। ज़रूरत पड़ने पर लोकपाल को अपनी बॉडी के लोगों के ख़िलाफ़ भी जांच करनी पड़ेगी। दूसरा, लोकपाल के आदेशों पर हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार किया जा सकेगा। इसके अलावा कदाचार (misconduct) के आरोप लगने पर सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यों की बेंच लोकपाल को हटा भी सकती है। 8. लोकपाल चयन समिति और चयन प्रकिया से जुड़ी आलोचनाएं। सरकारी संस्थाओं की ईमानदारी पर उठने वाले तमाम सवालों के मद्देनज़र यह महसूस किय गया कि चयन समिति एक व्यापक आधार वाली होनी चाहिए। साथ ही चयन प्रकिया में पारदर्शिता और जन भागीदारी का होना भी ज़रूरी है। चूंकि मंत्रियों के ख़िलाफ़ लोकपाल की जांच होने की संभावना ज़्यादा है, लिहाज़ा बिल में मंत्रियों को चयन समिति से दूर रखने की बात कही गई है। 9. इस तरह की व्यवस्था तो लोकतंत्र का अपमान है। हम देख चुके हैं कि किस तरह लोकतांत्रिक प्रकिया से चुने गए प्रधानमंत्रियों, गृह मंत्रियों और विपक्ष के नेताओं ने कमज़ोर और दब्बू केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) नियुक्त किए हैं। इसलिए बिल में कहा गया है कि चयन समिति में लोकसभा अध्यक्ष, राज्य सभा के उपसभापति, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज, हाई कोर्टों के दो सबसे वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और पिछले लोकपाल के सदस्य शामिल होंगे। इस प्रास्तावित चयन समिति में और भी सुधार किया जा सकता है। इस बारे में जनता से मशविरा किया जा रहा है, और ड्राफ्टिंग कमेटी की बैठकों में भी इस पर बहस की जाएगी। 10. क्या जन लोकपाल बिल अकेले भ्रष्टाचार की समस्या ख़त्म कर देगा? यह उम्मीद बिल्कुल नहीं की जानी चाहिए कि लोकपाल बिल अकेले ही भ्रष्टाचार की समस्या को पूरी तरह ख़त्म कर देगा। जब तक कि उन नीतियों पर अंकुश नहीं लगाते जिनसे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के मौक़े पैदा होते हैं और जन समर्थन इतना व्यापक नहीं हो जाता कि सरकार मनमर्ज़ी न कर सके, तब तक यह लड़ाई अधूरी है। न्यायपालिका में भी बड़े पैमाने पर सुधार की ज़रूरत है। वन्दे मातरम, Ankit Lal, IAC. |