India Against Corruption

Register

  India Against Corruption > INDIA AGAINST CORRUPTION > DISCUSSIONS > NEWS & VIEWS

गांधी ही नहीं, शिवाजी भी !

आज जबकि पूरा देश अन्ना की विजय में जन – जन की विजय देखते हुए उल्लसित है और जश्न मना .....



1
  • 1 sushantsinghal


  #1  
08-29-2011
Junior Member
 
: Aug 2011
: Saharanpur, U.P.
: 65
:
: 1 | 0.00 Per Day
गांधी ही नहीं, शिवाजी भी !


आज जबकि पूरा देश अन्ना की विजय में जन – जन की विजय देखते हुए उल्लसित है और जश्न मना रहा है, कुछ लोगों द्वारा अन्ना की आलोचना की जा रही है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने जो मार्ग अपनाया वह सही नहीं था। संसद पर अपनी जिद थोप कर उन्होंने संसद की अवमानना की है। चलो अच्छा है, इस प्रायोजित आलोचना के माध्यम से यदि हमारे कुछ राजनीतिज्ञ चाहते हैं कि संसद के प्रति जो सम्मान का भाव, जो सद्भावना अनशन के अंतिम क्षणों में देश में उपजी है, वह भी समाप्त हो जाये और सांसदों की बखिया फिर से उधेड़ी जाये तो यही सही।

सबसे पहली बात तो ये कि अन्ना ने कहा है – “मैं गांधी की ही नहीं, शिवाजी की भी भाषा बोलता हूं।“ इसका निहितार्थ क्या है? गांधी की भाषा बोलने का अर्थ है - जब कोई उनको प्रताड़ित करेगा, हथियार उठायेगा, जेल में डालेगा तो न तो वह खुद शस्त्र उठायेंगे और न ही अपने समर्थकों को अनुमति देंगे कि वे हिंसा का रास्ता अपनायें। जब कोई उनका अपना गलती करता दिखाई देगा तो वह खुद को दंडित करेंगे, भूखे रहेंगे ताकि उनके अपनों का हृदय परिवर्तन हो सके।

अब शिवाजी को भी अपना आदर्श मानने के निहितार्थ को समझें ! क्या किया था शिवाजी ने ? जब मुगल शासकों ने अफज़ल खां को शिवाजी को वार्ता के बहाने बुलाकर उनको मार डालने का दुष्चक्र रचा था तो शिवाजी ने भी पलटवार करते हुए अफज़ल खां का पेट फाड़ कर उसका काम तमाम कर दिया।

हमारी संसद देश की सर्वोच्च संस्था है जो इस देश की जनता ने अपने लिये बनाई है। इस संस्था की गरिमा अक्षुण्ण रखी जानी चाहिये। पर अगर संसद में भाषण और बहस के बजाय जूतों, चप्पलों और कुर्सियों को एक दूसरे पर फेंक कर सांसद अपने आप को अभिव्यक्त करते हों तो उस संस्था की गरिमा का हनन नहीं होता? जब सांसदों को खरीद कर विश्वास मत हासिल किया जाता हो तो उससे संसद की गरिमा का हनन नहीं होता? जब बयालीस साल तक लोकपाल कानून को लटकाया जाता है तो उससे संसद का मान बढ़ता है? महिला आरक्षण विधेयक पास नहीं किया जाता, इससे हमारे माननीय सांसद अपनी इस सर्वोच्च संस्था का सम्मान बढ़ाते हैं? अन्ना ने क्या किया जिससे संसद की अवमानना हुई? यही न कि उन्होंने जिद की कि जनलोकपाल बिल को ही पास किया जाये ? यदि वह जिद न करें तो क्या कोई लोकपाल बिल हमारे सांसद पास करेंगे ? बयालीस साल से तो किया नहीं! और फिर, उससे भी बड़ा प्रश्न ये कि कौन सा वाला बिल पास होगा ? क्या सरकारी बिल जिसमें भ्रष्टाचारी के बजाय शिकायतकर्ता को ही जेल में पहुंचाने का प्रावधान किया जा रहा है? क्या देश की जनता संसद की गरिमा के नाम पर इस अत्याचार को, अनाचार को सहन कर ले? संसद पर हमला हुआ और उस हमले का दोषी फांसी से आज भी दूर है, क्या इससे सरकार ने संसद की गरिमा बढ़ाई है?

अन्ना टीम का साबका ऐसी सरकार से था जो अन्ना से निपटने के लिये साम-दाम-दंड – भेद, छल – प्रपंच हर उपाय अपना हुए थी, आज भी अपनाये हुए है और अपने इस घटियापन से आगे भी बाज नहीं आयेगी । सरकार के कानूनबाज मंत्री लोमड़ी और भेड़िये की मिश्रित बुद्धि से अन्ना का ठीक उसी प्रकार काम-तमाम करने की जुगत भिड़ा रहे थे जैसे उन्होंने रामदेव को निबटाया। आप अत्याचार का, हिंसा का विरोध करने के लिये गांधी बन जायें पर अगर मुकाबला छल-प्रपंच-झूठ से हो तो शिवाजी का मार्ग अपनाना ही उचित है।

अन्ना का एकमात्र अस्त्र उनका पाक – साफ, संत समान व्यक्तित्व और नैतिक बल है जिसके सहारे उन्होंने जनता का दिल जीता और इस जन-शक्ति का भय दिखा कर एक घमंडी, आततायी सरकार को, अपने आप को लोमड़ियों से भी ज्यादा चालाक और होशियार मान रहे मंत्रियों को झुकाया। क्या बोला था स. मनमोहन सिंह ने लालकिले की प्राचीर से? “कुछ लोग देश में गड़बड़ी फैलाना चाहते हैं।” इंदिरा गांधी ने भी तो यही कह कर देश में आपात्काल थोप कर जयप्रकाश नारायण और सारे विपक्षी नेताओं को, पत्रकारों को बन्दी बना लिया था। क्या बोला था स. मनमोहन सिंह ने संसद में अपने बयान में? “यदि अन्ना अपने आप को इस देश की १२१ करोड़ जनता का प्रतिनिधि मान बैठे हैं तो उनको एक बार फिर सोचना होगा।“ आज जब स. मनमोहन सिंह कहते हैं कि मैं अन्ना का सम्मान करता हूं, उनको सलाम करता हूं तो क्या वह अन्ना के द्वारा अपनाये गये रास्ते को स्वीकृति नहीं दे रहे?
अन्ना ने तो शुरु से विनम्रता, अनुरोध और बातचीत का ही रास्ता अपनाया था। प्रधानमंत्री को बार-बार चिठ्ठी लिख कर अनुरोध किये कि लोकपाल बिल को पास करायें । पर स. मनमोहन सिंह का घमंड नहीं था तो क्या था जो उन्होंने इस चिठ्ठी की पहुंच की भी सूचना देना गवारा नहीं किया? उनका व्यवहार ऐसा ही था मानों कह रहे हों – कुत्ते भौंक रहे हैं, भौंकने दो ! जो मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बावजूद सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी के आगे नाक रगड़ते रहते हैं, उनके घरेलू नौकर की तरह से व्यवहार करते हैं उन स. मनमोहन सिंह ने अन्ना का बार-बार अपमान क्यों किया? क्या इसीलिये नहीं कि उनके मन में जनता के प्रति कोई आदरभाव है ही नहीं ? जो स. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर होते हुए विपक्षी दलों को कहते हैं कि उनके पास भी विपक्षी नेताओं को शर्मिन्दा कर सकने वाले बहुत सारे राज़ हैं जो जरूरत पड़े तो खोले जा सकते हैं, वह स. मनमोहन सिंह ब्लैकमेलर से अधिक कुछ हैं क्या? यदि स. मनमोहन को अन्ना ने जनशक्ति का भय दिखा कर “ब्लैकमेल” किया तो क्या गलत किया?
अन्ना ने आखिर कौन कौन से गलत काम किये? क्या बसें, रेलगाड़ियां फूंकी ? भारत बंद आयोजित किये ? डंडे के जोर पर देश भर में हड़तालें कराईं ? दुकानों में लूट मचाई ? नक्सलियों की तरह से गोलियां चलाईं, सशस्त्र बलों पर हमले किये? गुप्त सुरंगें बिछा कर सेना की पूरी की पूरी टुकड़ी उड़ा दी ? क्या सेना को, पुलिस को विद्रोह के लिये उकसाया? क्या तख्ता पलटने की बात की? क्या देश के दुश्मनों से हाथ मिलाया ? आखिर क्या किया अन्ना ने जिसे लेकर सरकार की अनुकंपा के आकांक्षी कुछ अंग्रेज़ी दां पत्रकार अन्ना के तरीकों में फासीवाद, भीड़तंत्र ढूंढ रहे हैं? इन कलम के तथाकथित सिपाहियों को रामलीला मैदान में आधी रात को सोये हुए प्रदर्शनकारियों पर सरकार का लाठियां लेकर टूट पड़ना फासीवाद नज़र नहीं आता? जब हमारे स्वनामधन्य प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री जनता को महंगाई के मुद्दे पर टका सा, अपमानित करने वाला जवाब देते हैं तो क्या वे जनता का सम्मान कर रहे होते हैं ? क्या उसमें इन लाल बुझक्कड़ अंग्रेज़ी दां पत्रकारों को अपने इन नेताओं की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिखाई नहीं देती ? फासीवाद और अधिनायकवाद के लक्षण दिखाई नहीं देते?
आज जब स. मनमोहन सिंह खुद चिठ्ठी लिख कर, अपने वरिष्ठ मंत्रियों के हाथ अन्ना को भेज रहे हैं तो क्या इसका अर्थ यह नहीं कि अब उनका घमंड चूर – चूर हो चुका है? अन्ना ने उनको आइना दिखा दिया है और बता दिया है कि स. मनमोहन सिंह वास्तव में क्या हैं और उनकी सरकार क्या है। आज जब देश की जनता अन्ना की विजय को दीवाली जैसा अवसर मान कर झूम रही है, गा रही है, जश्न मना रही है तो क्या इससे यह सिद्ध नहीं हो जाता कि हमारी अपनी सरकार, हमारे अपने चुने हुए माननीय सांसदों को जन शक्ति के आगे झुकते हुए देखकर जनता के जख्मी दिलों पर मरहम लगा है?

 



India Against Corruption
India Against Corruption is a PUBLIC Forum, NOT associated with any organisation(s).
DISCLAIMER: Members of public post content on this website. We hold no responsibility for the same. However, abuse may be reported to us.

Search Engine Optimization by vBSEO 3.6.0